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Wednesday, 6 February 2008

Rah Gai Sapanon Ki Nagari Basaten Basaten

रह गई,सपनों की नगरी...बसतें,बसतें!

घुम रहे थे सुंदर उपवन में,
भांति भांति के फूल थे खिलें...
एक कली आ गिरी दामन में,
बिन देखे ही मारे खुशी के,
चुम ली हमनें ... हंसतें,हंसते!
महक समाई ऐसी सांसों मे,
इधर,उधर देखा हमने उपवन में...
पंखों के फड़फड़ाहट की आवाज़,
एक पंछी बच गया था उधर,
सुनहरे जाल में... फंसतें,फंसतें!


घबरा गए हम और उसी क्षण,
कली का ठंडा स्पर्श अनुभव किया...
फेंक दी कली उठाकर दूर कहीं,
देखा!...तो वह थी हाय, नागिन!
बच गए थे हम..उसके डंसतें,डंसतें!

ना-समझ तो थे ही हम,
हर बार की तरह यारों!
इस बार भी खाया धोखा...
इस बार भी रह गई हमारी,
सपनों की नगरी...बसतें,बसतें!

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