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Tuesday 8 January 2013

अब ये आग न बुझेगी...

अब ये आग न बुझेगी...




पहले एक माचिस की तीली जली..
समझ बैठे उच्च पदासीन...
जलने दो..क्या कर लेगी नन्ही सी तीली...
पल दो पल की चमक दिखा कर...
बुझ जाएगी अपने आप भली.... 
पहले भी तो जलाई है लोगों ने...
कई कई तीलियां...कई कई बार....
हम तक आंच कभी न आई...
लोग ही झुल्सतें रहे हर बार....

लेकिन आग बन कर...
भडक ही उठी आखिर...
दामिनी नाम की चिनगारी...
और गले तक आ कर अटकी...

सधे हुए नेताओं की नेता गिरी...

ये आग कर देगी खाख...
नराधम, दुष्ट, नर-पिशाचों को...
नारी को अबला समझ कर टूट पड़ने वाले...
कुकर्मी,नीच, बहशी, दरिंदों को...
ये आग जला डालेगी..
जनता के सेवक बन कर...
लूट-पाट कर रहे डाकूओं को...
ये आग जला देगी जिन्दा..
नोट डकार कर...
मनमाने फैसले सुनाने वाले..
न्यायालय में बैठे न्यायाधिशों को...
ये आग बेबाकी से निगल लेगी...
खाकी-वर्दी पर कालिख पोतने वाले....
कहलाते सुरक्षा कर्मियों को...

ये आग बन चुकी है अब दावानल...
इसे बुझाना मुमकीन नहीं अब..
ये आगे बढ़ती जा रही..पल, पल!