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Thursday, 31 January 2008

काली रात करवटें लेती है!

काली रात करवटें लेती है!


हम जानते नहीं थे कि यहां...
बे मौसम बरसात भी होती है!
दिन के धवल उजाले में भी...
काली रात करवटें लेती है!


पंछियों के झुंड भी उडते,उडते...
टकरातें है किसी फौलाद से,
गिर जातें है यहां,वहां...
अकेली एक कली,किसी डाली की,
आग उगालती हुई.. 
हरा-भरा चमन भी फूंक देती है!


महकतें फूल भी सांसों को...
रोकने में होते है माहीर ऐसे!
लूटाते है ऐसी विषैली खुश्बू कि...
मृत्यु जीवन को समेट लेती है!


किसी भी घडी का न कोई भरोसा...
किसी भी व्यक्ति का नहीं है विश्वास!
क्या जड़ और क्या चेतन यारों...
हर चीज़ जब सुख-चैन हर लेती है!

अपनेपन का अहसास जताते...
आगे बढ़तें, कदमों की आहट...
पास आ कर अचानक..
मार देती है ठोकर... 
आगे चल देती है...दिशा बदल लेती है!

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