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Friday, 25 January 2008

फूल के बदले, मिले है कांटे...

फूल के बदले, मिले है कांटे...

गए थे लेने कुछ फूल,
कांटे ही आ गिरे झोलिमें हमारी...
की ऐसी शरारत हमारे यारों ने,
या किस्मत ही ऐसी थी हमारी...

कांटे हम पर गिराने वाले,
खुद भी कांटे ही थे शायद्...
वरना अगर वे फूल होते,
तो ये हालत न होती हमारी...

हम पर हंस रहे हो आज तुम्,
बेशक नाकामियाब है हम...
पर जब कल हम होंगे उंचाईयों पर,
तब देखना आख़िरी हंसी होगी हमारी...

कब कहा हमने कि कांटे,
तुमने गिराएं है हम पर...
तुम्हारी बेरुखी ने गिराएं है..पर,
कांटो से झोली तो भर गई हमारी...

वापस भी कर सकतें है हम,
ये कांटे अमानत है तुम्हारी...
संभाल कर रख लेंगे इन्हे तब तक,
जब तक कि आंखे नम है हमारी...

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