साथ नही रहा तुम्हारा...
कहना था जो कुछ तुमसे,
कह न सके तो क्या हुआ?
न कही बिजली ही गिरी...
न आसमां को ही कुछ हुआ!
हम सुनते रहे, तुम कह्ते रहे,
यूं ही समय गुजरता रहा...
दिन था पहले, फिर रात हुई,
फिर सुबह का इंतजार होता रहा!
इंतजार था कुछ अपनी बातों का,
जो होठों तक आ आ कर रुकती रही...
अनकहें हसीं सपने भी थे गुमसुम ,
सिर्फ दिल ही धड़कता रहा...
आज न तुम हो न हम है वहां...
न जाने होगा कौन उस जगह...
अकेलेपन के साथी है हम दोनों...
पर साथ नहीं है... हम कहाँ, तुम कहाँ...
कहना था जो कुछ तुमसे,
कह न सके तो क्या हुआ?
न कही बिजली ही गिरी...
न आसमां को ही कुछ हुआ!
हम सुनते रहे, तुम कह्ते रहे,
यूं ही समय गुजरता रहा...
दिन था पहले, फिर रात हुई,
फिर सुबह का इंतजार होता रहा!
इंतजार था कुछ अपनी बातों का,
जो होठों तक आ आ कर रुकती रही...
अनकहें हसीं सपने भी थे गुमसुम ,
सिर्फ दिल ही धड़कता रहा...
आज न तुम हो न हम है वहां...
न जाने होगा कौन उस जगह...
अकेलेपन के साथी है हम दोनों...
पर साथ नहीं है... हम कहाँ, तुम कहाँ...
0 comments:
Post a Comment