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Monday, 10 December 2012

रेगिस्तान की मरुभूमि में..

रेगिस्तान की मरुभूमि में..

अंगारों सी तपती रेत...
सूर्य देवता का प्रचंड प्रकोप...
बदन से लिपटी लाल ओढनी…..
मुंह ढका हुआ...सिर्फ आंखें खुली...
एक कतार में चल पडी...
एक जैसी...दस-बारह पनिहारियां...
नंगे पांवों को तेज तेज बढाती...रेगिस्तान की मरुभूमि में....
नंगे पांवों को तेज तेज बढाती...
तेज धूप को भूलाने की खातिर,..
मधुर गीतों को गाती-गुनगुनाती...
सिर पर 'मोढ'मोतियों वाले...
उस पर पितल की चमकती गगरिया...
जाना है अब भी बहुत दूर्...रेगिस्तान की मरुभूमि में...
जल से ही तो जीवन है...
जीवन को बचाना,कर्तव्य ही तो है..
गंगा,जमना हो...या हो सरस्वती...
जल मिलता हो जहांसे...
जगह वही है,स्वर्ग समान....
आखिर पनिहारियों को मिला...
जलसे भरा भंडार...एक ताल..
सुस्ताई बेचारी कुछ देर वहां..
..जी भर कर जल्-पान किया...
आंचल गिला किया..मुख पर डाला!...
गगरियां भर ली..अपनी अपनी...रेगिस्तान की मरुभूमि में...
शहरवासी नहीं समझतें...
जल की बूंदों की कींमत्...
बहा देते है...बेतहाशा,..
नल खुल्ले छोड,
नालियों में बहाकर..या कारों को नहला कर्...
यही जल कितना है अनमोल..रेगिस्तान  की  मरुभूमि में...
बेचारी अबलाएं आज भी...
जल भरने जाती हर रोज्...
दूर..बहुत दूर्... तपती धूप हो या चलें सर्द हवाएं...
तेज आंधी या तूफान् भी हो राह में...
जल ले कर ही लौट आती.
ममतामयी नारियांरेगिस्तान की मरुभूमि में...
चांद पर पहुंचे है हम..
शनि-मंगल भी है करीब...
विञान ने भी..की बहुतेरी तरक्की..
लेकिन..जल की समस्या,
दूर न हुई हमसे...
कब तक दूर से जल...ला,ला कर..
प्यास बुझाती रहेगी पनिहारियां?....रेगिस्तान की मरुभूमि में...



                   

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