इश्क का खेल....
इश्क का खेल खेलने का..
मजा ही कुछ और होता है..
होता है महबूबा के सामने एक सनम..
दूसरा मन के दर्पण में होता है!..
जानते है दोनों सनम..
महबूबा नहीं है किसी एक की...
फिर भी प्यार में धोखा खाने का...
मजा ही कुछ और होता है!...
हमने भी किया इश्क..
धोखा भी खाया यारों!..
जानते हो इश्क में आंसू बहाने का..
मजा ही कुछ और होता है!
चित्रकूट के घाट पर मिले थे हम...
तब घटा छाई हुई थी काली, काली!
क्या याद है तुम्हे वह शाम?
तुम कर रही थी कोई अटखेली!
हमने पिछेसे आकर, हौलेसे...इश्क का खेल खेलने का..
मजा ही कुछ और होता है..
होता है महबूबा के सामने एक सनम..
दूसरा मन के दर्पण में होता है!..
जानते है दोनों सनम..
महबूबा नहीं है किसी एक की...
फिर भी प्यार में धोखा खाने का...
मजा ही कुछ और होता है!...
हमने भी किया इश्क..
धोखा भी खाया यारों!..
जानते हो इश्क में आंसू बहाने का..
मजा ही कुछ और होता है!
चित्रकूट के घाट पर मिले थे हम...
तब घटा छाई हुई थी काली, काली!
क्या याद है तुम्हे वह शाम?
तुम कर रही थी कोई अटखेली!
तुम्हारी आंखों पर रखी थी हथेलियां!
तुम ने हाथ पकड़ कर हमारा...
नाम किसी गैर का ले लिया....
तब गुस्से से तम-तमाते हम,
जाने लगे थे तुम्हे छोड़ कर वहीं...
पर तुमने ऐसे में पकड़ ही लिया,
प्यार से हाथ हमारा वहीं...
मान गए थे तब हम तुम्हें...
और प्यार से लगाया था गले भी!
जान गए थे तुम्हारे दिल का हाल...
पर कुछ न कह सके हम...तब भी!
आज न चुप रहेंगे हम..
कहने को आज न जाने क्यों..
बार बार मन मचल उठता है...
लुका-छिपी का खेल खेलते है सारे...
होता रहता है, चलता रहता है...
दिल मे कोई और…सामने कोई और..
इश्क के खेल में तो सब चलता है!
2 comments:
अच्छे भाव हैं। लिखते चलिये।
likhte rahiye. lekin ye
word verification hata lejiye.
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