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Wednesday, 9 April 2008

महबूबा थी हमारी मुंह फेर लिया हमने

मेहबूबा थी हमारी...मुंह फेर लिया हमने!

जाना था हमें एक लग्न मंडप में...
रास्ता भूल कर आ पहुंचें इस गली...
…पर ऐसा क्या है चमत्कार कि...
सभी दोस्त भी मौजूद है यहां?
जब रहा न गया हमसे तो...
एक यार से पूछ ही लिया हमने!


“यार शादी कौन कर रहा है?
अपना ही कोई यार है क्या?
तुम सब तो आमंत्रित हो पर...
भूले से मै पहुंच ही गया यहां!
दुल्हा कौन? दुल्हन कौन?"
जानकारी तहे दिल से, लेनी चाही हमने!


यार ने ठंडी आह भरते हुए कहा...
"कैसे बताऊं यार! शब्द नही है पास मेरे..
वही तेरा जिगरी दोस्त 'रौनक'!
दुल्हा बना है आज इस मंडप में...
जानता हूं! तुझे नहीं बुलाया गया यार!
"हमें क्यों नहीं बुलाया?" यह भी पूछा हमने!


जवाब मिला,"दुल्हन को देख ले!
तेरे पांव के नीचे से जमीन सरक लेगी!
आपा खो बैठेगा तू; यकीन है मुझे दोस्त!
ग़लती से शायद तू आ गया इस जगह पर...
अच्छा है कि चला जा वापस अब घडी!"
तो, वापसी के लिए कदम भी बढाएं हमने!


'क्यों देखें हम दुल्हन किसी की?
हमारी मेहबूबा से तो खूबसूरत वो...
किसी हाल में भी, हो नहीं सकती!
ग़लती से हम यहां आ गए है तो क्या?
जिगरी दोस्तने आमंत्रित नहीं किया तो क्या?'
सोचते हुए आगे कदम बढाएं हमने!
…कि अचानक चल पडी ऐसी आंधी कि...
दुल्हन के चहेरे से हट गया घुंघट यारों!
चांदसा मुखड़ा अब था बिलकुल सामने यारों!
वो दुल्हन तो थी मेरे जिगरी यार की! पर...
जीने-मरने की कसमें खाने वाली हाय!
मेहबूबा थी हमारी...बस मुंह फेर लिया हमने...

2 comments:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

इसमें मेरा दोष नहीं है कि मैंने गलती से आपके ब्लाग का नाम "माला मोशन(motion) की पढ़ लिया लेकिन जब अपने छोटे से दिमाग पर जोर डाला तब जाकर समझ आया कि ये तो "माला मोतियों की" है। :)
अगर इस कमेंट पर हंसी आयी हो तो ठीक है और अगर गुस्सा आया हो तो भड़ास पर आकर मेरी बखिया उधेड़ दीजियेगा:)

Anonymous said...

khoobsoorat. 100/100