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Sunday, 9 March 2008

बेबस घटाएँ बरसने लगी

बेबस घटाएं बरसने लगी...

एक गीत लिखा था मैने..तेरे लिए,
कुछ इस तरह से, कुछ उस तरह से...

लिखा था उन काली घटाओं पर,
जो तेरे गेसूओं से भी थी काली....
अंधकार ही को 'कलम' बनाया था मैने,
कुछ इस तरह से,कुछ उस तरह से....

वही पुष्प गुलाब का साथ था मेरे,
जो तूने दिया था प्यार से मुझे...
जाने क्या कह रहा था 'जालिम'
कुछ इस तरह से,कुछ उस तरह से....
मैने प्रणय-गीत लिख डाला तो,
पुष्प क्यों मुरझाने लगा हाय!...
मेरे हाथ से गिर कर...बिखर गया,
कुछ इस तरह से,कुछ उस तरह से...

तभी खिलखिलाती,नज़र तू आई...
किसी और की बांहों में बाहें थी तेरी...
मेरी कलम टूटी,

...बेबस घटाएं बरसने लगी,
कुछ इस तरह् से,कुछ उस तरह से....


1 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत बढिया प्रणय गीत है।