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Friday, 4 May 2012

आई है...एक खुश खबर


है!.....कुछ नए-पन की तलाश!




नहीं है कोई नया विचार...
सामने रखने के लिए मेरे पास!
सब कुछ पुराना है..जाना पहचाना है...
जो भी संजोया हुआ है...खास, खास!


रचनाएँ पढ़ रही हूँ...हर रोज...
जैसे बासी कढी को कोई दे रहा उबाल!
बासी खाना खा कर भर रहा है पेट...
तो नया पकवान बनानेका क्यों उठाए जंजाल!


चलिए...अपनी मरजी का हर कोई मालिक...
नुक्ताचीनी करने का हमें क्या है हक?
किसी को ये करो...ये न करो क्यों कहें...
अपनी पहुँच है सिर्फ अपने तक!


फिरभी आशा है कुछ नए फूलों के खिलने की...
जो ताजगी दे...प्रेरणा दें...दे खुशहाल महक!
जैसे कर रहा है विज्ञान तरक्की...
क्या साहित्य नहीं ले सकता सबक?


साहित्यिक किसी और दुनियासे आए नहीं है....
वह रहते..विचरतें है...हमारे बीच,यहीं पर!
रचना का कुछ नया पकवान हरदम...
बनाकर परोसतें है...डटें हुए है यहीं पर!


खुश खबर यही है कि 'परिकल्पना'....
बेताबी से ढूंढ रही है आज उन्हें!
उनकी कला की कद्र होगी यकीनन...
आदर,मान- सम्मान भी प्रदान होगा उन्हें!


वटवृक्ष और परिकल्पना के साथ... आप....इस लिंक द्वारा जुड सकतें है!...

http://urvija.parikalpnaa.com/2012/05/blog-post_03.html

11 comments:

sangita said...

शानदार ख़ुशी का मौका है.

vandana gupta said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

रविकर said...

हुवे कलम घिस्सू कई, सबकी बढ़िया शान |
थी लक्ष्मी रूठी सदा, पर शारद-वरदान |

पर शारद-वरदान , झमाझम लक्ष्मी बरसी |
भावों का अवसान, कलम विषयों में हरसी |

कर रविकर विषपान, विषय-नव पाए कैसे |
घिसे-पिटे सब्जेक्ट, लिखाए जैसे तैसे ||

ZEAL said...

waah...lovely !

सदा said...

वाह ...बहुत बढिया।

रश्मि प्रभा... said...

खुश खबर यही है कि 'परिकल्पना'....
बेताबी से ढूंढ रही है आज उन्हें!
उनकी कला की कद्र होगी यकीनन...
आदर,मान- सम्मान भी प्रदान होगा उन्हें!...कुछ नयापन लाने का प्रयास

दिगम्बर नासवा said...

वाह .... सुन्दर रचना ...

Aruna Kapoor said...

आप सभी ने इस छोटीसी रचना को सराहा...सभी का हार्दिक धन्यवाद!

नीरज गोस्वामी said...

सराहनीय रचना...बधाई

नीरज

रचना दीक्षित said...

फिरभी आशा है कुछ नए फूलों के खिलने की...
जो ताजगी दे...प्रेरणा दें...दे खुशहाल महक!
जैसे कर रहा है विज्ञान तरक्की...
क्या साहित्य नहीं ले सकता सबक?

कितनी सही बात कही अरुणा दी आपने. व्यर्थ की आलोचना से अच्छा है दूसरों को प्रोत्साहन देना. फिर बदलाव तो सांसारिक नियम है..

आभार.

Pallavi saxena said...

सार्थक रचना....समय मिले आपको तो कभी आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है http://mhare-anubhav.blogspot.co.uk/