इस बाढ़ से मिली है...राहत और खुशहाली
...और साहित्य के आकाश का....
रंग गहराता चला गया......
लाल, पिला, नीला , नारंगी...
इंद्रधनू के सात रंग....
एक रंग में रंग गए....
पुस्तकों के पन्नों की फड-फडाहट,
ठंडी बयार की पैदाइश...
और अचानक से...
बिजली कडकी...
बरसने लगी बूंदे...
पहले धीरे..फिर तेज...
ये कविताएँ बरस रही थी....
दमदार कहानियों के....
गुदागुदातें हास्यव्यंगों के....
गंभीर निबंधों के.....
मोटे मोटे उपन्यासों के...
ओले भी टूट पड़ें...
आहाहा..
क्या समां था..क्या नजारा था...
दिल चाहने लगा...
अंदर ही अंदर कहने लगा...काश कि ये ऐसा ही रहे,
कहर ढहता ही रहे...
..और शायद सुन ली हमारी....
उसी उपरवाले ने....
जारी है वर्षा....
सदियों से.....
बाढ़ भी आई है लेखकों की...
लिखने वाले सभी है लेखक...
कोई कविता, कोई कहानी...
पर लिखते अवश्य है...ब्लॉग!
सुन्दर और सुन्दरतम रचनाओं का...
आया है बहुत बड़ा सैलाब!
बाढ़ से स्थिति गंभीर नहीं है....
बाढ़ से मिल रही है राहत....
बाढ़ से बढ़ रही है खुशहाली...
आपसी प्रेमभाव और
कुछ खो कर, पाने की चाहत...
राजनेता चिंतित नहीं है बाढ़ से...
सभी लिखते है..लेखक है....
इस बाढ़ के बचाव कार्य की....
न जरुरत कल थी...न आज है...
अगर जरुरत है....
तो साहित्य के आकाश को....
और विशाल बनाने की है.....
...और साहित्य के आकाश का....
रंग गहराता चला गया......
लाल, पिला, नीला , नारंगी...
इंद्रधनू के सात रंग....
एक रंग में रंग गए....
पुस्तकों के पन्नों की फड-फडाहट,
ठंडी बयार की पैदाइश...
और अचानक से...
बिजली कडकी...
बरसने लगी बूंदे...
पहले धीरे..फिर तेज...
ये कविताएँ बरस रही थी....
दमदार कहानियों के....
गुदागुदातें हास्यव्यंगों के....
गंभीर निबंधों के.....
मोटे मोटे उपन्यासों के...
ओले भी टूट पड़ें...
आहाहा..
क्या समां था..क्या नजारा था...
दिल चाहने लगा...
अंदर ही अंदर कहने लगा...काश कि ये ऐसा ही रहे,
कहर ढहता ही रहे...
..और शायद सुन ली हमारी....
उसी उपरवाले ने....
जारी है वर्षा....
सदियों से.....
बाढ़ भी आई है लेखकों की...
लिखने वाले सभी है लेखक...
कोई कविता, कोई कहानी...
पर लिखते अवश्य है...ब्लॉग!
सुन्दर और सुन्दरतम रचनाओं का...
आया है बहुत बड़ा सैलाब!
बाढ़ से स्थिति गंभीर नहीं है....
बाढ़ से मिल रही है राहत....
बाढ़ से बढ़ रही है खुशहाली...
आपसी प्रेमभाव और
कुछ खो कर, पाने की चाहत...
राजनेता चिंतित नहीं है बाढ़ से...
सभी लिखते है..लेखक है....
इस बाढ़ के बचाव कार्य की....
न जरुरत कल थी...न आज है...
अगर जरुरत है....
तो साहित्य के आकाश को....
और विशाल बनाने की है.....
24 comments:
सही कहा आपने ऐसी बाढ तो आती ही रहे। शुभकामनायें।
बहुत सुखद अनुभूति सकरात्मक सोच और प्रेरणा
क्या बात है जी लेकिन इस बाढ से किसी को कुछ मिले या ना मिले हमारे नेता तो माला माल हो ही जाते है
वाह कितनी अलग स्टाइल है आपकी । आकाश तो विशाल है उसमें जितने साहित्यिक आयें सब समा जायेंगे । सिर्फ मन विशाल होना चाहिये । बहुत सुंदर कविता ।
wah .sunder rachna.
pahli baar apke blog par aana hua bahut acchha likha he aapne.
bahut khoob ye badh hardam aati rahe aur ham usme bhte rahe .
abhar
mann ka sailaab kabhi na kabhi to bahar nikalta hi hai....
A beautiful flood of emotions..
कोई शक नहीं कि एक बढ़िया कविता बनी.. बस कुछ शब्द गलत टाइप हो गए वो देख लें तो बेहतर रहे..
दीपक जी!...गलतियों की ओर जरुर इंगित करें!... मेरी शिक्षा मराठी, गुजराती और इंग्लिश माध्यम से हुई है!...हिन्दी भाषा के प्रति मुझे सन्मान है और हिन्दी में लिखने का साहस जरुर मैने दिखाया है!....लेकिन हिन्दी माध्यम से कभी भी पढाई की नहीं है!
इस बाढ़ के बचाव कार्य की....
न जरुरत कल थी...न आज है...
अगर जरुरत है....
तो साहित्य के आकाश को....
और विशाल बनाने की है.....
bahut sunder bhav...
wah ! wah !
बहुत सुन्दर भावों से सजी है रचना...ऐसी बाढ़ का हमेशा इंतज़ार है....
आपने दीपक जी की बात पर कहा है की गलतियों की तरफ इंगित करें तो मैंने आपकी टंकण की गलतियों को सुधार दिया है....आप चाहें तो यहाँ देख कर सही कर सकती हैं ...
...और साहित्य के आकाश का....
रंग गहराता चला गया......
लाल, पीला , नीला , नारंगी...
इन्द्रधनुष के सात रंग....
एक रंग में रंग गए....
पुस्तकों के पन्नों की फड़-फड़ाहट ,
ठंडी बयार की पैदाइश...
और अचानक से...
बिजली कड़की ...
बरसने लगी बूंदे...
पहले धीरे..फिर तेज...
ये कविताएँ बरस रही थीं ....
दमदार कहानियों के....
गुदगुदाते हास्यव्यंगों के....
गंभीर निबंधों के.....
मोटे मोटे उपन्यासों के॥
ओले भी टूट पड़े ...
आहाहा..
क्या समां था..क्या नज़ारा था...
दिल चाहने लगा...
अंदर ही अंदर कहने लगा...
काश कि ये ऐसा ही रहे,
कहर ढहता ही रहे...
..और शायद सुन ली हमारी....
उसी ऊपरवाले ने....
जारी है वर्षा....
सदियों से.....
बाढ़ भी आई है लेखकों की...
लिखने वाले सभी है लेखक...
कोई कविता, कोई कहानी...
पर लिखते अवश्य है...ब्लॉग!
सुन्दर और सुन्दरतम रचनाओं का...
आया है बहुत बड़ा सैलाब!
बाढ़ से स्थिति गंभीर नहीं है....
बाढ़ से मिल रही है राहत....
बाढ़ से बढ़ रही है खुशहाली...
आपसी प्रेमभाव और
कुछ खो कर, पाने की चाहत...
राजनेता चिंतित नहीं है बाढ़ से...
सभी लिखते है..लेखक है....
इस बाढ़ के बचाव कार्य की....
न जरुरत कल थी...न आज है...
अगर जरुरत है....
तो साहित्य के आकाश को....
और विशाल बनाने की है.....
आपकी यह रचना एक सकारात्मक सोच को कहती है...बहुत पसंद आई....
अरुणा जी ,
क्षमा चाहूंगी...गलतियों कि तरफ मैंने इंगित नहीं किया था....किसी और ने किया था..पर आपने सुधारने कि ख्वाहिश दिखाई थी तो मैंने बस सही करने का प्रयास किया था...आपका विषय हिंदी ना होते हुए भी आप इतना अच्छा लिखती हैं...इससे मैं बहुत प्रभावित हुई...
सुधार को आप अन्यथा ना लें....आपसे परिचय पाना मुझे अच्छा लगा....
आप मेरे ब्लॉग पर आयीं..आभार
यहाँ भी आपका इंतज़ार है :
http://geet7553.blogspot.com/
आपका पूरा प्रोफाइल अभी पढ़ा और बहुत सी जानकारी मिली....आप तो बहुत प्रतिष्ठित लेखिका हैं...और यह जो टाइपिंग की गलतियाँ होती हैं वो ब्लोग्स के लेखन में बहुत ज्यादा मायने नहीं रखतीं...पर फिर भी कुछ लोग ऐसा लिख देते हैं...जैसे जानबूझ कर गलतियाँ की हों...बस उसी को सुधारने की मेरी मंशा थी ..मन पर मत लीजियेगा....आभारी रहूँगी
कितना सच्चा और सुन्दर लिखा है आपने ..बहुत अच्छा लगा .
बहुत सुन्दर रचना ...
__________________
"पाखी की दुनिया' में आपका स्वागत है.
मंगलवार 06 जुलाई को आपकी रचना ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है आभार
http://charchamanch.blogspot.com/
आइयेगा ज़रूर..
यह ऐसी बाढ़ है कि इसमे जान माल की हानि नही होती बल्कि ज्ञान रूपी माल मे इज़ाफ़ा ही होता है। आपने अपनी कलम के सहारे सुन्दर चित्रण किया है। …………आभार।
बहुत गहरी बात की है आपने अपनी रचना में...बधाई...
नीरज
सकारात्मक सोच है .. अच्छी रचना है आपकी ...
ये वास्तव में बहुत ख़ुशी की बात है कि आप मराठी, गुजराती और अंग्रेज़ी माध्यम से होने के बाद भी बेहतरीन हिन्दी साहित्य सृजन कर रही हैं मैम..
सार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।
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