वाह, वाह!..क्या कहने!
कल ही का वाकया सुनाते है दोस्तों!
एक हिंदी काव्य प्रतियोगिता पर नजर पडी!
प्रतियोगिता का परिणाम आ चुका था;
मन में उत्सुकता पैदा होती जान पडी!
हम बढते गए आगे आगे...
'विनरों' के नाम थे अनजाने...
'सांत्वना' से भी नवाजित थे जो...
उनमें भी नजर न आए अपने,जाने-माने!
प्रथम 'विनर' ले गया था..
रूपये 25 हजार की 'बिग' राशी...
20 हजार ले गया था..
द्वितीय क्रमांक का प्रत्याशी!
और मात्र 15 हजार में बनाया था..
तीसरे नंबर वाले को संतोषी!
दोस्तों!.. इस प्रकार से हुई थी यहाँ...
अच्छे कवियों की ताज-पोशी!
'विनरों' की कविताएँ पढ़ने से...
हम रोक न सके अपने आपको...
एक के बाद एक पढते चले गए....
उस दिन नींद भी न आई हमें रात को!
यहाँ ब्लॉगर्स डॉट कॉम पर....
आएं दिन पढते है हम सुन्दर कविताएँ..
कुछ कवि''दोस्त' तो बड़ी ही कुशलता से ...
सामने रखते है अपनी भावनाएं...
कैसी हार-जीत?..कौन आगे..कौन पीछे,
वे तो पेश करते रहतें है नई नई रचनाएँ...
उन 'विनर्स' से तुलना करें तो...
बहुत आगे है यहाँ की प्रतिभाएं!
ऐसा ही होता आया है सदियों से,
हकदारों को मिलता नहीं सम्मान!
अयोग्य बटोर लेते है प्रशंसा...
शायद यही है,विधी का लिखा विधान!
कल ही का वाकया सुनाते है दोस्तों!
एक हिंदी काव्य प्रतियोगिता पर नजर पडी!
प्रतियोगिता का परिणाम आ चुका था;
मन में उत्सुकता पैदा होती जान पडी!
हम बढते गए आगे आगे...
'विनरों' के नाम थे अनजाने...
'सांत्वना' से भी नवाजित थे जो...
उनमें भी नजर न आए अपने,जाने-माने!
प्रथम 'विनर' ले गया था..
रूपये 25 हजार की 'बिग' राशी...
20 हजार ले गया था..
द्वितीय क्रमांक का प्रत्याशी!
और मात्र 15 हजार में बनाया था..
तीसरे नंबर वाले को संतोषी!
दोस्तों!.. इस प्रकार से हुई थी यहाँ...
अच्छे कवियों की ताज-पोशी!
'विनरों' की कविताएँ पढ़ने से...
हम रोक न सके अपने आपको...
एक के बाद एक पढते चले गए....
उस दिन नींद भी न आई हमें रात को!
यहाँ ब्लॉगर्स डॉट कॉम पर....
आएं दिन पढते है हम सुन्दर कविताएँ..
कुछ कवि''दोस्त' तो बड़ी ही कुशलता से ...
सामने रखते है अपनी भावनाएं...
कैसी हार-जीत?..कौन आगे..कौन पीछे,
वे तो पेश करते रहतें है नई नई रचनाएँ...
उन 'विनर्स' से तुलना करें तो...
बहुत आगे है यहाँ की प्रतिभाएं!
ऐसा ही होता आया है सदियों से,
हकदारों को मिलता नहीं सम्मान!
अयोग्य बटोर लेते है प्रशंसा...
शायद यही है,विधी का लिखा विधान!
31 comments:
प्रतियोगिता तो ऐसी ही होती है पैसेवाली :)
जो कर जाये दिमाग को खाली
...यही आज का सच है रश्मी प्रभा जी!
विधिना लिखकर सो गए, अपने अतुल विधान |
सरेआम अदना अकल, डाले नए निशान |
डाले नए निशान, शान से कविता रचते |
उद्वेलित हो हृदय, तहलके जमके मचते |
स्वान्त: लिखूं सुखाय, जानता रविकर इतना |
पुरस्कार जो पाय, आय हमको वह विधि- ना ||
..धन्यवाद रविकर जी!
ऐसा ही होता आया है सदियों से,
हकदारों को मिलता नहीं सम्मान!
अयोग्य बटोर लेते है प्रशंसा...
शायद यही है,विधी का लिखा विधान!
अरुणा जी ये है आज के युग का सच …………
पैसा मचाये धमाल
योग्यता सोये पाँव पसार
बहुत सही ... कहा आपने
आभार
सच है. ऐसा ही होता आया है ...
बहुत ही खुबसूरत अभिव्यक्ति।
बड़ी मिठास से परोसा गया कटु सत्य .... बधाई अरुणाजी
..वन्दना जी,सदाजी, शिखा जी,राजेन्द्र कुमार जी और अनीला जी!...बहुत बहुत धन्यवाद कि आप यहाँ पधारें और रचना आपको पसंद आई!
यह सत्य है आजकल प्रतियोगिता भेद भाव,दाम का बोलबोला हो गया है,बहुत सार्थक उद्गार।
सटीक व्यंग्य
...धन्यवाद संगीता जी कि यह व्यग्य आपको पसंद आया!
कितनी कुशलता से आज की साहित्यिक प्रतियोगिताओं की बखिया उधेड़ दी अरुणा जी ! बहुत अच्छी लगी आपकी रचना ! शुभकामनाएं !
अच्छा व्यंग है पर यथार्थ है !
Latest postअनुभूति : चाल ,चलन, चरित्र (दूसरा भाग )
..साधना जी, प्रसाद जी,..बहुत बहुत धन्यवाद!
सच **ऐसा ही होता आया है सदियों से,
हकदारों को मिलता नहीं सम्मान!
अयोग्य बटोर लेते है प्रशंसा...
शायद यही है,विधी का लिखा विधान!
...बहुत बहुत धन्यवाद मधु जी...कि आपको यह रचना पसंद आई!
bahut sunder ...
..धन्यवाद मानव मेहता जी!
बहुत सुन्दर और अपने भी जिस तरीके से रचना की है हम भी पहली लाइन से अनंत तक जाने के लिए मजबूर हो गए
मेरी नई रचना
एक स्वतंत्र स्त्री बनने मैं इतनी देर क्यूँ
बहुत सुन्दर और अपने भी जिस तरीके से रचना की है हम भी पहली लाइन से अनंत तक जाने के लिए मजबूर हो गए
मेरी नई रचना
एक स्वतंत्र स्त्री बनने मैं इतनी देर क्यूँ
ऐसा ही होता आया है सदियों से,
हकदारों को मिलता नहीं सम्मान!
अयोग्य बटोर लेते है प्रशंसा...
शायद यही है,विधी का लिखा विधान!
!!!!!!!!!!!!!!!!
ऐसा ही होता आया है सदियों से,
हकदारों को मिलता नहीं सम्मान!
अयोग्य बटोर लेते है प्रशंसा...
शायद यही है,विधी का लिखा विधान!
आज पहली बार आपके ब्लॉग पर टहलती हुई पहुंच गयी व्यंग पढ़ा बहुत मज़ा आया पढ़कर......
अपने ब्लॉग का पता भी छोड़ रही हूँ .......यदि पसंद आये तो join करियेगा ....मुझे आपको अपने ब्लॉग पर पा कर बहुत ख़ुशी होगी .
http://shikhagupta83.blogspot.in/
यही स्वरुप हो गया है फिर भी प्रतियोगिता ही कहलाती है... :)
..धन्यवाद आशाजी,...धन्यवाद शिखा जी,....धन्यवाद समीर जी!...आप के आगमन से अत्यधिक खुशी मिल रही है!
...धन्यवाद मानव जी,...धन्यवाद प्रतिक जी!...आप का सहर्ष स्वागत है!
ये आज के समय का विधान बन गया है .. विधि का तो नहीं ...
...धन्यवाद दिगंबर नासवा जी कि आप का आगमन हुआ!...अब मन को तो यही समझाना होता हें न कि समय के साथ भी जो घटित होता है ..प्रभू की इच्छा से या भाग्य(विधी)के लेख के अनुसार ही होता है!
You have lots of great content that is helpful to gain more knowledge. Best wishes.
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