अब ये आग न बुझेगी...
पहले एक माचिस की तीली जली..
समझ बैठे उच्च पदासीन...
जलने दो..क्या कर लेगी नन्ही सी तीली...
पल दो पल की चमक दिखा कर...
बुझ जाएगी अपने आप भली....
पहले भी तो जलाई है लोगों ने...
कई कई तीलियां...कई कई बार....
हम तक आंच कभी न आई...
लोग ही झुल्सतें रहे हर बार....
लेकिन आग बन कर...
भडक ही उठी आखिर...
दामिनी नाम की चिनगारी...
और गले तक आ कर अटकी...
सधे हुए नेताओं की नेता गिरी...
ये आग कर देगी खाख...
नराधम, दुष्ट, नर-पिशाचों को...
नारी को अबला समझ कर टूट पड़ने वाले...
कुकर्मी,नीच, बहशी, दरिंदों को...
ये आग जला डालेगी..
जनता के सेवक बन कर...
लूट-पाट कर रहे डाकूओं को...
ये आग जला देगी जिन्दा..
नोट डकार कर...
मनमाने फैसले सुनाने वाले..
न्यायालय में बैठे न्यायाधिशों को...
ये आग बेबाकी से निगल लेगी...
खाकी-वर्दी पर कालिख पोतने वाले....
कहलाते सुरक्षा कर्मियों को...
ये आग बन चुकी है अब दावानल...
इसे बुझाना मुमकीन नहीं अब..
ये आगे बढ़ती जा रही..पल, पल!
पहले एक माचिस की तीली जली..
समझ बैठे उच्च पदासीन...
जलने दो..क्या कर लेगी नन्ही सी तीली...
पल दो पल की चमक दिखा कर...
बुझ जाएगी अपने आप भली....
पहले भी तो जलाई है लोगों ने...
कई कई तीलियां...कई कई बार....
हम तक आंच कभी न आई...
लोग ही झुल्सतें रहे हर बार....
लेकिन आग बन कर...
भडक ही उठी आखिर...
दामिनी नाम की चिनगारी...
और गले तक आ कर अटकी...
सधे हुए नेताओं की नेता गिरी...
ये आग कर देगी खाख...
नराधम, दुष्ट, नर-पिशाचों को...
नारी को अबला समझ कर टूट पड़ने वाले...
कुकर्मी,नीच, बहशी, दरिंदों को...
ये आग जला डालेगी..
जनता के सेवक बन कर...
लूट-पाट कर रहे डाकूओं को...
ये आग जला देगी जिन्दा..
नोट डकार कर...
मनमाने फैसले सुनाने वाले..
न्यायालय में बैठे न्यायाधिशों को...
ये आग बेबाकी से निगल लेगी...
खाकी-वर्दी पर कालिख पोतने वाले....
कहलाते सुरक्षा कर्मियों को...
ये आग बन चुकी है अब दावानल...
इसे बुझाना मुमकीन नहीं अब..
ये आगे बढ़ती जा रही..पल, पल!
17 comments:
वाह!
...धन्यवाद चंद्र भूषण जी!
सटीक |
शुभकामनायें दीदी ||
धन्यवाद रविकर जी!
लेकिन आग बन कर...
भडक ही उठी आखिर...
दामिनी नाम की चिनगारी...
और गले तक आ कर अटकी...
इनका हजमा बहुत दुरुस्त है. कुछ दिनों में यह भी हजम कर जायेंगे.
नहीं रचना जी!..अब इस आग को ये लोग हजम नहीं कर पाएंगे!
अति सुंदर कृति
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नवीनतम प्रविष्टी: गुलाबी कोंपलें
आग अभी भी सुलगी हुयी है ... बस इसकी चिंगारी सुलगती रहनी चाहिए
रचना जी, विनय जी और संगीता जी!...बहुत बहुत धन्यवाद!
धन्यवाद रश्मी प्रभा जी..कि मै आप का हाथ पकड़ कर चल रही हूँ!
ये आग यूं ही जलती रहनी चाहिए सतत ... परिवर्तन आने तक ...
साफ़ आसार नजर आ रहे है दिगंबर जी!...अब ये आग न बुझेगी!
लेकिन आग बन कर...
भडक ही उठी आखिर...
दामिनी नाम की चिनगारी...
और गले तक आ कर अटकी...
बहुत अद्भुत अहसास...सुन्दर प्रस्तुति
..धन्यवाद मदन मोहन जी!
बहुत ही सटीक और सार्थक रचना .. आज के समाज की सही हालत को दर्शाने वाली .
दिल से बधाई स्वीकार करे.
विजय कुमार
मेरे कहानी का ब्लॉग है : storiesbyvijay.blogspot.com
मेरी कविताओ का ब्लॉग है : poemsofvijay.blogspot.com
ये आग सुलगती रहे। दामिनि नाम की चिनगारी भडकती रहे ताकि और न तडपें दामिनियाँ।
Hey thank you!!! I was seeking for the particular information for long time. Good Luck ?
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