समझ कर भी ना-समझ है हम!
चाहता तो है मन...
बहुत कुछ कहना!
बिती बातों को....
बार बार दोहराना....
किसी से कुछ ले कर...
किसी को कुछ देना!
पर ये हुई सिर्फ....
अपने मन की बात....
किसी के मन में क्या समाया....
मेरी तरह ही...
हर कोई है अज्ञात!
गलतफहमियां अनगिनत....
जिनकी नहीं कोई औकात...
फिर भी उन्हें दिल से निकालना...
है सभी के लिए....बहुत बड़ी बात!
प्रेम रस से है भरपूर...
हर दिल का...हर कोना...
इस बात को समझता है...
हर कोई सयाना...
पर हर किसी पर उसे लुटाना...
चाहेगा क्या कोई दीवाना?
प्रेम की गंगा बहाने की बातें...
किताबों में रह गई है दब कर...
साधु-महात्माओं के....
प्रवचनों में सुनाई देती है अक्सर!
...पर सुन कर अनसुना करने की आदत....
जोर मार रही है हमारे अंदर....
...प्यारे है हमें झगड़े और क्लेश-कलह.....
नफरत और बदले की भावना!
कटु शब्दों की गर्म बौछारें.....
बड़ा ही अच्छा लगता है हमें....
मित्रों का पल भर में शत्रु बन जाना!
कुछ कहने पर....
देखा है हमने ऐसे सिर-फिरों को...
'मै ऐसा ही हूँ!' कहकर मुस्कुरातें हुए ...,
अपने अख्खडपन पर गर्व करतें हुए ,
बड़े ठाठ से इधर-उधर इतरातें हुए !
क्या कृष्ण....क्या राम...
क्या हर हर भोले...
क्या जय श्री भगवान!
नजर आ रहा है हर कोई....
'नाम' दिन-रात इन्हीका जपता...
क्या कहता कबीरा इस पर....
काश!...कि आज वह ज़िंदा होता!
नोट...यह हमारे समाज की छबी है!...इसे कृपया व्यक्तिगत ना लिया जाए!
उपन्यास के उन्नीसवे पन्ने का लिंक दिया जा रहा है!
http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/mujhekuchhkehnahai/entry/19-%E0%A4%95-%E0%A4%95-%E0%A4%B2-%E0%A4%9C-%E0%A4%AC%E0%A4%A8-%E0%A4%97%E0%A4%88-%E0%A4%95-%E0%A4%B2-%E0%A4%A8-%E0%A4%89%E0%A4%AA%E0%A4%A8-%E0%A4%AF-%E0%A4%B8
18 comments:
बहुत सुन्दर भाव --
आभार दीदी ।।
गस्त कबीरा मारता, अक्खड़ ढूंढे खूब ।
कोठे पर पाया पड़ा, रहा सुरा में डूब ।
रहा सुरा में डूब, चरण-चुम्बन कर चहके ।
अपनों को अपशब्द, गालियाँ देकर बहके ।
यह अक्खड़पन व्यर्थ, स्वार्थी सोच बताता ।
फँसा झूठ में जाय, तोड़ के सच्चा नाता ।।
बहुत सुंदर और सटीक प्रस्तुति...
सच उजागर करती सटीक रचना ..
bilkul sahi kaha
क्या बात है!! बहुत सुन्दर
इसे देखें-
फेरकर चल दिये मुँह, था वो बेख़ता यारों!
आईना अब भी देखता है रास्ता यारों!!
क्या बात है!! बहुत सुन्दर
बहुत भावपूर्ण रचना...
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति |
शुक्रवारीय चर्चा मंच पर ||
सादर
charchamanch.blogspot.com
very true..
बहुत सही कहा है आपने ...
sach kaha.aur sunder likha
Bahut sunder kavita !
Badhaiyannnn!
waah bahut sunder sandesh deti rachna.
प्रेम की गंगा बहाने की बातें...
किताबों में रह गई है दब कर...
साधु-महात्माओं के....
प्रवचनों में सुनाई देती है अक्सर!
sahi bat kahi he.
कितना सच कहा है आपने ..दरअसल मनों में बढ़ता अविश्वास इसकी बहुत बड़ी वजह है ....हर आदमी दूसरे की तरफ पीठ करने से डरता है ...और इसीलिए यह भाई चारा..यह प्यार ..कई कई मौतें मरता है
सच्चाई को उजागर करती खूबसूरत रचना |
बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति.
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