कविता भी बहाती है आंसू!
उस दिन नदी किनारे...
एक पत्थर पर बैठी हुई ...
एक अकेली कविता...
आंखों से बह रहे थे ....
बड़े बड़े मोतियों जैसे आंसू!
झर-झर बहते जा रहे थे...
नदी की बहती धारामें...
समाकर बढ़ रहे थे आगे आगे...
वहां मेरी उपस्थिति...
महसूस की कविताने...पूछा कैसे हुआ आना यहाँ...
मैं तुम्हे खोजती हुई...
आई हूँ यहाँ...
कविता!...तुम्हारी जरुरत...
कवियों को है....
किताबों को है...
पाठकों को है....
गायकों को है...
संगीतकारों को है.....
श्रोताओं को है...
सभी महफ़िल सजाएं बैठे है....
और तुम यहाँ, इस कदर ...
और तुम यहाँ, इस कदर ...
उदास, खामोश और
आंसू बहाती हुई...
हां! ..मुझे छोड़ दो....
अकेले कुछ देर के लिए....
बहाने दो आंसू...
दिल सब का बहलाती हूँ...
दिल मेरा भी है....
दर्द मैं भी करती हूँ महसूस....
मन में मेरे भी उठती है तरंगे...
मन मेरा भी है!
..और तभी महसूस किया मैंने...
दिल, मन और आत्मा ....
कविता की भी होती है....
हम जाने अनजाने कविता पर....करते है अत्याचार....
तब आत्मा घायल...
कविता की भी होती है!
14 comments:
दिल, मन और आत्मा ....
कविता के भी होते है....
हम जाने अनजाने कविता पर....
करते है अत्याचार....
तब आत्मा घायल...
कविता की भी होती है!
बहुत खूब !!
बहुत सुंदर कविता जी. धन्यवाद
अपनी पोस्ट के प्रति मेरे भावों का समन्वय
कल (23/8/2010) के चर्चा मंच पर देखियेगा
और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
Bahut achha likha hai ..vakai kavit ka dard ubhar aaya .
हम जाने अनजाने कविता पर....
करते है अत्याचार....
तब आत्मा घायल...
कविता की भी होती है!
बहुत ही सशक्त बात कही आपने, बहुत मार्मिक शब्द विन्यास, शुभकामनाएं.
रामराम.
कविता पर अत्याचार ??? क्या बात है । नही होनी चाहिये ।
हां! ..मुझे छोड़ दो....
अकेले कुछ देर के लिए....
बहाने दो आंसू...
दिल सब का बहलाती हूँ...
दिल मेरा भी है....
दर्द मैं भी करती हूँ महसूस....
मन में मेरे भी उठती है तरंगे...
मन मेरा भी है!
काश कविता समझ पाती की उसको समझने वाली ही तो उसके पास थी वर्ना आजकल के इस दौर में लोग अपने रिश्तों को भी भूल जाते हैं...समझने की कोशिश समझ कर भी नहीं करते तो वहाँ उस कविता को इतना मान दिया जा रहा है...तो कविता को मान जाना चाहिए न.
एक कवी मन ही कविता के दर्द को समझ सकता है.
सुंदर प्रस्तुति .
वाह ....कविता की भावनाओं को महसूस करने वाला दिल कितना संवेदनशील होगा ...मैं यही सोच रही हूँ ...खूबसूरत अभिव्यक्ति ..
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
बहुत पसन्द आया
हमें भी पढवाने के लिये हार्दिक धन्यवाद
बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..
hmm sahi kha aapne kavita bhi aansu bahaati hai..jab dukhti hai uski atma...
bahut sunder.
kavita bhi ghayal hoti hai ...bahut hi bhawpurn rachna
apni yah rachna vatvriksh ke liye bhejen rasprabha@gmail.com per parichay tasweer blog link ke saath
http://urvija.parikalpnaa.com/
आह , कविता का दर्द झर झर बह रहा है आंसूओं में बहता जा रहा है ।
बहुत सुंदर अलग सी कविता ।
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