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Wednesday, 14 March 2012

मै था दिल-फैंक सैया...( हास्य-कविता)



मैं  था दिल-फैंक सैंया...(हास्य-कविता)

एक गोलगप्पे...भल्ले-पापडी बेचने वाले युवक ने अपनी आपबीती जब मुझे सुनाई ...तो लगा ‘क्या बात है!...यह कहानी सिर्फ मुझ तक रहे...ऐसा होना ठीक नहीं!...इस कहानी से सबक ले कर तो हजारों मनचलें ‘सैंया’...शरीफ’भैया’में तब्दील हो सकते है!...नेकी और पूछ पूछ!...इस कहानी को कविता का रूप दे कर सुनाने की जरुरत है...तो सुनिए वह कहानी ..... एक हास्य कविता के खिल-खिलाते रूप में...मैं दिल-फैंक सैंया,शरीफ भैया बन गया!....
वह एक मनचला...दिल-फैंक सैंया....
आखिर शरीफ ‘भैया’ बन ही गया...
बनाया एक हसीना ने....कैसे?
हम सुनते गए...वह सुनाता गया!

भल्ले-पापडीयां-टिक्कियाँ-पावभाजी...
वो चटखारे ले ले कर खाती रही...
सब उधार के खाते में लिखवाती रही...
मेरा दिल आ गया था उस पर...
मेरी नजर उसके कंधे पर टंगे पर्स से ...
टकरा कर वापस लौटती रही!
उसका मुस्कुराना ही पे-मेंट था मेरे लिए...
सोचा मेरे लिए प्यार ही होगा ...
उसके भी दिल में...
पर...
उस दिन जब उसने ‘भैया’कह कर पुकारा...
तब भी अपने उपर मैंने लिया नहीं!
सोचा किसी और से कहा होगा भैया...
मेरी शक्ल तो किसी भैया जैसी नहीं!
लेकिन जब फिर जोर दे कर बोली...
’भल्ले तो आज रहने ही दो भैया!...
बीस गोल-गप्पे खा लिए...कम तो नहीं!’
सुन कर मेरे तो होश ही उड़ गए....
तब अपने आप को संभाल पाया नहीं!

दो दिन लग ही गए...फिर संभल ही गया....
जब वो फिर आई मेरी दुकान पर...
मैंने उधारी का बिल थमा ही दिया....
दिमाग से हट चुका था ‘सैंया’!
अब मैं बन चुका था गोल-गप्पे वाला भैया!
सो...ज़रा भी घबराया नहीं...
हसीना के हाथ से टकराया मेरा हाथ...
फिर भी मैं शरमाया नहीं....

अब हसीना पर भी नजर डालिएं जनाब!
मुस्कुराई वो...मेरी आँखों में आँखे डाल कर...
दाहिना हाथ मेरी तरफ बढ़ा कर...
‘आई लव्ह यू, हैंडसम!’ कहा उसने....
हाथ में थमाए हुए बिल पर...
उसने नजर डाली ही नहीं....
अब पूरे होश में था मैं....
नमस्ते की मुद्रा में हाथ जोड़ कर...
ढिठाई से सीना तान कर... कह दिया...
‘ बहन जी!...बिल चुकता कीजिए जल्दी से...
उधारी का घंधा करना अब मेरे बस में नहीं!
भल्ले-पापडी-गोलगप्पे बेचने वाला...
मैं भैया हूँ....कोई हैंडसम नहीं!’....

...और बिना उधार चुकाएं....
पाँव पटकती हुई...गई वह हसीना !
फिर कभी दिखाई दी नहीं!
पैसे चाहे डूब गए...
घाटा हुआ तो हुआ...
पर मुझ जैसे दिल फैंक आशिक को...
शरीफ ’भैया’ बनाना उसका....
क्या एक भागीरथ काम नहीं?....


( फोटो गूगल से साभार ली गई है!)

31 comments:

ANULATA RAJ NAIR said...

:-)

बाल बाल बचे भैया....वरना पूरा ठेला ही बिकवा देतीं बहनजी....

मनोरंजक प्रस्तुति अरुणा जी.
सादर.

संजय भास्‍कर said...

अभिव्यक्ति का यह अंदाज निराला है. आनंद आया पढ़कर.

रविकर said...

कितने हलवाई मिटे, कितने धंधे-बाज ।
नाजनीन पर मर-मिटे, जमे काम ना काज ।

जमे काम ना काज, जलेबी रोज जिमाये ।
गुपचुप गुपचुप भेल, मिठाई घर भिजवाये ।

फिर अंकल उस रोज, दिए जब केटरिंग ठेका ।
सत्य जान दिलफेंक, उसी क्षण दिल को फेंका ।।

दिनेश की टिप्पणी : आपका लिंक
dineshkidillagi.blogspot.com

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति said...

वाह अरुणा जी हास्य का यह तड़का अच्छा लगा ... चलो गोलगप्पे वाले भैया को होश तो आया .. हमें भी तस्सल्ली हुवी..

shikha varshney said...

अच्छा हुआ अकाल ठिकाने आई :):)

डॉ. दिलबागसिंह विर्क said...

आपकी पोस्ट कल 15/3/2012 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
कृपया पधारें
http://charchamanch.blogspot.com
चर्चा मंच-819:चर्चाकार-दिलबाग विर्क

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

:):) जल्दी ही संभल गए भैया ...

Amrita Tanmay said...

बड़ी जल्दी अक्ल जगह पर आ गयी..बढ़िया..

डा श्याम गुप्त said...

क्या बात है ..बह्न जी...

Kailash Sharma said...

वाह! बहुत मनोरंजक प्रस्तुति..आभार

kanu..... said...

are waah...maza aa gaya padhkar.kai din baad hasya kavita padhi

रश्मि प्रभा... said...

बिना उधार चुकाएं....
पाँव पटकती हुई...गई वह हसीना !
फिर कभी दिखाई दी नहीं!
पैसे चाहे डूब गए...
घाटा हुआ तो हुआ...
पर मुझ जैसे दिल फैंक आशिक को...
शरीफ ’भैया’ बनाना उसका....
क्या एक भागीरथ काम नहीं?.... बेजोड़

सदा said...

वाह ... बहुत खूब ।

mridula pradhan said...

sahaz haasy bahut achcha laga.....

प्रेम सरोवर said...

सुन्दर प्रस्तुति..बहुत-बहुत बधाई । मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।

Asha Joglekar said...

वाह सैंया से भैया बने
लग गई अकल ठिकाने ॉ
चाहे कीमत देकर ही सही ।

Satish Saxena said...

वाह भैया वाह....

प्रेम सरोवर said...

बहुत ही सुंदर प्रस्तुति । मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।

S.N SHUKLA said...

आपके ब्लॉग पर पधारने और समर्थन प्रदान करने का ह्रदय से आभारी हूँ.

सुन्दर प्रस्तुति, सुन्दर भावाभिव्यक्ति, बधाई.

प्रेम सरोवर said...

बहुत ही सुन्दर एवं सारगर्भित रचना । मेरे नए पोस्ट "अमृत लाल नागर" पर आपका बेसब्री से इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।

Anju (Anu) Chaudhary said...

वाह ........सच में मज़ा आ गया डॉ साहिबा ..

amrendra "amar" said...

सुन्दर प्रस्तुति..बहुत-बहुत बधाई ।

Udan Tashtari said...

बेहतरीन....................

virendra sharma said...

नमस्ते की मुद्रा में हाथ जोड़ कर...
धीटाई से सीना तान कर... कह दिया...
‘ बहन जी!बिल चुकता कीजिए जल्दी से...
दिल फैंक सैंया ,दो पहिया वाले भी कई हैं ,कविता उन तक भी पहुँचाओ ,

ढीठ से 'होना चाहिए ढीठाई /ढिठाई .प्लीज़ चेक 'धीटाई'

रचना उपकारी है लोक कल्याण से प्रेरित है .

भैया कह के पतली गली से निकल जातीं हैं कई ,खेलती रहतीं हैं -सैंया सैंया -कहती हुई -

चल छैयां छैयां ....

Aruna Kapoor said...

आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद!...एक साधारण रचना को आप सभी ने इतना पसंद किया...अपने दिल की खुशी व्यक्त करने के लिए मुझे शब्द नहीं मिल रहे...बस!...तहे दिल से आभारी हूँ!

virendra sharma said...

ब्लॉग पर आपकी मीठी दस्तक का शुक्रिया .
मैम कई लडकियां बहुत महत्वकांक्षी होतीं हैं,"भैया भैया " खेलती हैं और आगे निकल जातीं हैं.जबकि उस VAKT का सत्य भौतिक आकर्षण ही RAHTAA है भैया वैया नहीं लेकिन इनकी निगाह अपने लक्ष्य पर रहती है भैया टाइम पास रह जातें हैं .

ब्लॉग पर आपकी मीठी दस्तक का शुक्रिया .

मनोज कुमार said...

लाजवाब!
लौट के बुद्धू घर को आए!

Sawai Singh Rajpurohit said...

वाह ... बहुत खूब ...सुन्दर प्रस्तुति.
बैसाखी के पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएं.

!!आपका स्वागत है!! !!यहाँ पर भी आयें!!
मित्रो...गौ माता की करूँ पुकार सुनिए और कम से कम 20 लोगो तक यह करूँ पुकार पहुँचाईए
गौ ह्त्या के चंद कारण और हमारे जीवन में भूमिक
तुम मुझे गाय दो, मैं तुम्हे भारत दूंगा

dinesh gautam said...

वाह! बहुत मनोरंजक कविता, मज़ा आ गया।

Sawai Singh Rajpurohit said...

बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति...

देवेन्द्र पाण्डेय said...

सार्थक हास्य व्यंग्य।