...तृप्ति का अहसास...
याद आती है,
घनधोर घटाएं मस्ती में मचलती
सर्द हवाओं के झोंकों संग झुमती....
इठलाती, बलखाती और....
बरसने को बेताब सी....
पल पल तरसाती...
मेरे प्यासे मन की प्यास पर्...
गरज कर बेबाक सी हंसती....
यह सोच कर मानो मुस्कराती....
कि.. अब बरसना तो है ही हमें..
क्यों न और थोडी हो,
....इंतजार परस्ती...
गडी हुई नजरें मेरी....याद आती है,
घनधोर घटाएं मस्ती में मचलती
सर्द हवाओं के झोंकों संग झुमती....
इठलाती, बलखाती और....
बरसने को बेताब सी....
पल पल तरसाती...
मेरे प्यासे मन की प्यास पर्...
गरज कर बेबाक सी हंसती....
यह सोच कर मानो मुस्कराती....
कि.. अब बरसना तो है ही हमें..
क्यों न और थोडी हो,
....इंतजार परस्ती...
घटाओं के सीने से टकराती...
कुछ थपथपियों का दुलार ....
कुछ पारदर्शी वस्त्र पर टीकती...
मखमली स्पर्श की...
मात्र कल्पना से ही बेकाबू..
उनकी सांसों की डोर में
जा...बार बार अट्कती....
प्यास की चरम सीमा पर पहुंच कर्..
अचानक फिसल कर,
वापस अपनी जगह, आ जमती!
..अब सावन की घटाएं,
यारो!...मेरी नहीं...
किसी और की प्यास बुझा रही है।
बरसने का अंदेशा बेशक था यहां पर्..
पर जाके वे कहीं और बरस रही है!
वही सर्द हवा का झोंका दुश्मन बनकर,
छीन कर्,उडा ले गया काली घटाएं..
मिलन के सपनें, मिटाएं मेरे सारे...
पर्..अब क्या कहें यारो!
घटाओं को मेरे मन से क्या वास्ता।
उन्हें तो प्यास बुझाने में मिल रहा आनंद्...
वे जहाँ बरस रही है...बेशक..
तृप्ती का अहसास वहां भी ले रही है।
12 comments:
बहुत सुन्दर रचना है,
---मेरा पृष्ठ
चाँद, बादल और शाम
उन्हें तो प्यास बुझाने में मिल रहा आनंद्...
वे तृप्ती का अहसास, वहां भी ले रही है।
अरे वाह एक विरहन के मन की आवाज लगती है. बहुत खुब.
धन्यवाद
उन्हें तो प्यास बुझाने में मिल रहा आनंद्...
वे तृप्ती का अहसास, वहां भी ले रही है।
लाजवाब. बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
वही सर्द हवा का झोंका दुश्मन बनकर,
छीन कर्,उडा ले गया काली घटाएं..
मिलन के सपनें, मिटाएं मेरे सारे...
पर्.. घटाओं को मेरे मन से क्या वास्ता।
भावपूर्ण वर्णन बहुत सुंदर मौसम की दास्ताँ
प्रदीप मनोरिया
http://manoria.blogspot.com
http://kundkundkahan.blogspot.com
कुछ पारदर्शी वस्त्र पर टीकती...
मखमली स्पर्श की कल्पना से बेकाबू..
उनकी सांसों की डोर में अट्कती....
प्यास की चरम सीमा पर पहुंच कर्..
बेहतरीन रचना के लिये आप को बधाई
सुंदर लगी आपकी रचना
thank you ma'am for following my blog...
बहुत सुन्दर कविता है, बधाई।
कम शब्दों में सारी बातें ,
पल में कह देतीं हैं आप
प्रकृति के स्नेह छुवन को
यूँ ही कह देतीं आप .
बरसात का बादल तो दीवाना है क्या जाने
किस राह से बचना है किस छत को भिगोना है ।
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