दस्तक दे रहा दरवाजे पर.....
पहले धीमी थी आवाज ;
ध्यान गया न गया...
अपनेआप में मग्न थे हम....
सुनाई दिया न दिया...
सुंदर सपनों के सजीले महल,
मन के खुले आसमान में,
बनानें, मिटाने से कहाँ थी फुरसत?
और सुंदर, अति सुंदर की चाहत में,
हम ने मन का दरवाजा जो बंद किया...
फ़िर सुनाई दी दस्तक...
अब पहले से कुछ तेज आवाज
खलल पड़ रही थी अब हमारी मग्नता में,
शायद आवाज बंद होने का इन्तेजार भी था...
कि अचानक कुछ याद आया....
हाँ!.. आना तो था किसीने;
हर बार की तरह उसे याद था...
उसे याद था अपना कर्तव्य;
भुलक्कड़ तो हम भी नहीं थे खैर!
ज़रा से हडबडा गए तो क्या हुआ?
समझ गए है हम कौन है वो...
सपनों के सजीले महल बनाने में...
हिम्मत और प्रेरणा देने वह आया है....
"नूतन वर्ष' नाम है उसका ....
हम दरवाजा खोलने जा रहे है!
हर बार की तरह मुस्कुराते हुए...
हमारा साथ देने ही वह आया....
गुरु, सखा, आराध्य देव भी है वह...
इस बार अपने पिटारे में देखें,
हम सब के लिए, क्या क्या लेकर आया!
9 comments:
बेहद सुन्दरतम रचना ! आपने नव वर्ष की याद दिला दी ! आपको भी नये साल की बहुत बधाई और शुभकाअमनाएं !
रामराम !
वाह ,आशा और विश्वास से परिपूर्ण !
सुंदर रचना !! हम भी बेतावी से इन्तजार कर रहे है इस नये साल का...
धन्यवाद.
naya sal apke liye dher sari khusiyan lekar aye aisi dua karta hun........
bahut badhiya likha hai apane.
naya sal aa hi raha hai.
badhai.
First of All Wish U Very Happy New Year....
Sundar rachana...
Bdhai..
नववर्ष की हार्दिक ढेरो शुभकामना
नववर्ष की हार्दिक ढेरो शुभकामना
बहुत खूबसूरत जज्ब्बत पिरोये हैं आपने
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