आतंकवाद को नेस्त-नाबूद कर दो यार!
आज आग की लपटों में ही,
घिरे हुए है हम सभी...
एक ही जगह है ऐसी,
कमरा भी एक है.....
बंद है दरवाजें सभी,
काला धुँआ मुंह, आँख,नाक के अन्दर...
घुटतें दम से है परेशान ,फ़िर भी...
बाहर निकलने के लिए,
एक मत... एक राय नहीं है...
चाहतें तो है सभी बाहर निकलना,
पर अफसोस कि...
एक नही अनेक दरवाजों पर ,
कर रहे है प्रहार सभी....
काश कि मिलकर सभी,
एक ही दरवाजे को तोडे...
आपस में दिल कि कडियाँ जोडें...
तो बाहर निकल सकतें है, अब घड़ी!
एक मत और एक जुट होना,
जरुरी है ऐसे में... नहीं तो....
राख के ढेर में बदलते,
देर कितनी लग सकती है भला!
अब भी समय है बच निकलने का ...
हिंदू , मुस्लिम, इसाई वाले दरवाजों को छोड़ो...
हिन्दी, मराठी या तमिल कन्नड़ को भी छोड़ो....
भारतीय बनकर, वैमनस्य का कमजोर दारवाजा...
फ़ौरन तोडो... निकलो बाहर...
आतंकवाद की धधकती आग में,
जल जाने दो आतंकियों को....
तुम एक हो,..एक ही भारतमाता है तुम्हारी,
एकता में है कितनी ताकत,
दुनिया को फ़िर दिखादो...एक बार !
अंग्रेजों को मात दी थी तुमने...
अब वो घड़ी आ गई है कि,
आतंकवाद को नेस्त-नाबूद कर दो यार!
17 comments:
बहुत अच्छी अभिव्यक्ति.. काश आतंकवाद इस दुनिया से मिट जाए..
आपके ब्लॉग पर हिन्दी में लिखने वाला बॉक्स अच्छी तरह से काम कर रहा है. ये टिप्पणी मैंने इसी में टाइप की है.. हिन्दी ब्लॉग टिप्स पर visit करने का शुक्रिया..
हिंदू , मुस्लिम, इसाई वाले दरवाजों को छोड़ो...
हिन्दी, मराठी या तमिल कन्नड़ को भी छोड़ो....
भारतीय बनकर, वैमनस्य का कमजोर दारवाजा...
फ़ौरन तोडो... निकलो बाहर...
बहुत बेहतरीन और सटीकता से लिखा !
रामराम !
काला धुँआ मुंह, आँख,नाक के अन्दर...
घुटतें दम से है परेशान ,फ़िर भी...
बाहर निकलने के लिए,
एक मत... एक राय नहीं है...
चाहतें तो है सभी बाहर निकलना,
पर अफसोस कि...
एक नही अनेक दरवाजों पर ,
कर रहे है प्रहार सभी....
बहुत खुब लिखा आप ने, ओर एक सची बात भी है यह. अगर सभी मिल कर लडे तो क्या बात है.
धन्यवाद
बहुत प्रेरणाप्रद कि दुनिया को दिखा दो कि हमने अंग्रेजों को मात दी थी /धधकती आग में आतंकवादियों को जल जाने दो बहुत जोश भारी अभिव्यक्ति /बैमनस्य के दरवाजे तोड़ने की बात समयानुकूल /राख के ढेर में बदलने की बात कड़ी चेतावनी /मिलकर दरवाजा तोड़ने की बात एकता का प्रतीक /इस रचना में लगभग सभी विषयों को समेट लिया गया है /समय के मुताविक बहुत ही बढ़िया रचना लगी
आमीन ....बस यही दुआ है
आदरणीय Ma'am,
सचित्र सा कहती यह कविता हरेक मानी में बेहद महत्वपूर्ण बनी. बहुत ही सुंदर एवं उम्दा. प्रभावशाली. अगर हम कविता सी कतार बने खड़े हो जाएँ...निश्चित ही सफल हों. आमीन.
वक़्त सिर्फ़ आज का ही नहीं है
वक्त की नज़ाकतें बारहां रहीं हैं...
जब जागो सवेरा हो जाए की तर्ज़ पर
आज नजाकत बड़ी है.
वक़्त है जब हम हरे रहने दें
अपने गम और लड़ पड़ें आतंक के ख़िलाफ़...
जब तक न हों सफल हम.
---
सादर;
अमित के. सागर
ओजस्वी कविता,
हम भी शामिल हैं इस मुहीम में आप के साथ
बहूत खूब आपकी इन पंकितियों में आपने सबकुछ बयां कर दिया....
हम भारतवासियो की सबसे कमजोर नस यही है की हम एकजुट नहीं हैं | हम हमेशा से जिस बात का दंभ भरते आये हैं वो है अनेकता में एकता परन्तु सबसे बड़ी विडम्बना की बात ये है के वह खोखली है हमे अब तो कम से कम इस बात को समझ ही जाना चाहिए..
प्रेरक कविता . आपका लिंक मैंने अपने ब्लॉग में दिया है. -स्वाति
Aaapki is kavita mein jo deshbhakti hai , wo hamen sazak karti hai .Aur aatankwad ke khilaf hamen ekjut karti hai .
itni acchi kavita ke liye badhai..
regards,
Vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com/
Ek hokar rahana bahut aawashyak hai is ghadi me. Ek achchi aur samayik rachana
sab kuchh itana asan evm saral nahin hai. bahut sari baten hai isake pichhe.
प्रेरक बेहद महत्वपूर्ण कविता..शुक्रिया.
Sahi kaha aapne,Aatankwad ko nestanabud karne ka samay gaya hai, magar iski pahal ke liye America ka munh dekhne se to safalta milne se rahi.
Aapka poora blog padha ....sabhi rachnaye ek se badhker ek hai...mujhe sabhi pasand aayee....
ab lagta hai aapke blog per baar baar aane ko dil chahega....
Badhai
MILE SUR APKA HAMARA
ATANKWAD SE MUKT HO
PYARA NYARA DESH HAMARA...AMIN
हर बार की तरह आपकी लेखनी ने जादू बिखेरा है
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