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Friday, 10 October 2008

चला जाऊँगा मैं

S...चला जाऊँगा मैं...S

" सोच क्या रहे हो अब ओल्ड मैन?

अब मरना तो पड़ेगा ही तुम्हें!

बहुत जी लिए अब बाउजी ...

अब इस दुनिया से तो, जाना ही पड़ेगा तुम्हें!

अब जो कुछ है तुम्हारा...

सब हो कर रहेगा हमारा...

साइन कर दो इस स्युसाइड नोट पर ....

इतना तो करना ही पड़ेगा तुम्हें!

चलो, देर मत करो मेरे आका!

ये सामने पड़ी जहर की शीशी....

जल्दी से गटक कर, अभी इसी वक्त...

तत्काल दम तोड़ना है तुम्हें!

तुम्हारी धन-दौलत की चिंता...

अब हमारे हवाले कर दो फ़ौरन!

गोड का नाम लेना ही ठीक है....

अब जाते जाते तुम्हारे लिए! "

" यह तो बहुत अच्छा ही हुआ...

जाने के लिए , बिल्कुल तैयार हूँ मैं!

मेरे जाने का इंतजाम किया चिरंजीवी!

आज तो बहुत ही खुश हूँ मैं!

तुम्हें पढाया , लिखाया, खिलाया...

इन सब का मीठा फल पाया...

खुशी इतनी मिली है मुझे आज तो...

कि बिना जहर पीए ही दम तोड़ दूँ मैं!

..लेकिन अन्तिम इच्छा बाकी है मेरी...

अगर पुरी कर सको तो मेरे प्यारों!

सोने पे सुहागे का काम हो के रहेगा ...

...और ठंडक दिल में लिए जाऊँगा मैं!

जानते ही हो तुम मेरे दिल के टुकडो!

...कि शुगर की बिमारी से ग्रस्त हूँ मैं!

250 ग्राम बटर-स्कोच आइस-क्रीम....

जहर के बदले खिला दो तो...

तुम्हें दुवाएं दे कर... दम तोड़ दूंगा मैं!"

12 comments:

कडुवासच said...

दमदार-शानदार-बजनदार अभिव्यक्ति है।

Anonymous said...

kuch halke shabdo ke prayog se rachi gayi ek shashakt rachana.

----------------Vishal

प्रदीप मानोरिया said...

सुंदर भावसहित रचना बहुत बहुत बधाई मेरे ब्लॉग पर पधारने का धन्यबाद अपना आगमन नियमित बनाए रखे और मेरी नई रचना कैलेंडर पढने पधारें

हिन्दीवाणी said...

ये कविता नहीं आपने हकीकत बयान की है। मैं ऐसे कई बुजुर्ग लोगों को जानता हूं जिन्हें ऐसी ही यातनाओं से गुजरना पड़ रहा है। नए भारत की जो पीढ़ी सामने आ रही है, जिससे मैं भी प्रभावित हूं, उसके लिए परिवार संस्था और मानवीय मूल्यों का कोई सरोकार नहीं है। सचमुच, बहुत दुखद है या स्थिति।

Amit K Sagar said...

आज की बोली में उम्दा.

राज भाटिय़ा said...

आज का सच आप ने अपनी इस सुन्दर कविता मै उतार दिया.
धन्यवाद

आशा जोगळेकर said...

आज का यथार्थ वह भी व्यंग की बटरस्कॉच लिये, बहुत बढिया ।

दिगम्बर नासवा said...

व्यंग के साथ साथ व्यथा का अच्छा समायोजन है
अच्छी अभिव्यक्ति है
बधाई

Vinay said...

वाह-वाह मज़ा आ गया, क्या बात साहब!

अवाम said...

अति सुंदर प्रस्तुति. सच है जो बाप बेटे को खिला-पिला, पढ़ा-लिखा कर बड़ा करता है, उसका सारा बोझ अकेले उठता है, ताकि वो उसका सहारा बन सके. पर आजकल ४ बेटे मिलकर बाप का बोझ उठाने को तैयार नहीं है.

indianordinary said...

thanks Jayaka for showing solidarity and support for my feelings .

also u have a unique and a lovely name .

thanks once again
sanjay

karmowala said...

आपने अच्छा प्रयाश किया है लोगो को एहसाश होना चाहिए की हम अपने बच्चो को कैसे पाल- पोशकर बड़ा कर रहे है की वो परिवार और रिश्ते -नातो को बेकार समझने लगे है