a href="http://hindiblogs.charchaa.org" target="_blank">हिंदी चिट्ठा संकलक

Tuesday, 26 October 2010

...यह कविता मेरे पति श्री. पृथ्वीराज कपूर ने लिखी है! ...आज कल रिश्वतखोरी जोरों पर है... ख़ास तौर पर सरकारी दफ्तरों में इसके बगैर काम चल ही नहीं सकता!.... चपरासी से ले कर ऊँचे ओहदे वाले ऑफिसर तक रिश्वत को खाद्य बना कर 'ॐ स्वाहा ' किए जा रहे है! ...इन लोगों से सामान्य जनता का पाला पड़ना तो तय है ही!...बिना सरकारी दफ्तरों के बेचारा भारतीय नागरिक जाएगा भी तो कहाँ?...उसे भी लगता है कि काश मैं भी रिश्वत ले रहा होता या रिश्वत लेने वाले का बेटा होता!

मेरा अधुरा सपना!


काश मैं रिश्वतखोर का बेटा होता!
स्कूल में रिश्वत दे कर अच्छे अंक पाता!
एंट्रेंस के पेपर लिक करवा कर,
उच्च श्रेणी के कोलेज में प्रवेश पाता!...काश मैं रिश्वत खोर का ....

रिश्वतखोरों को रिश्वत दे कर, अच्छी नौकरी पाता !
बैठ कर रिश्वतखोरों के संग , अपना मान बढाता !
रिश्वत खा, खा कर,
समाज में अकलमंद का खिताब पाता!...काश मैं रिश्वतखोर का...

रिश्तेदारों में ,दोस्तों में, समाज में....
झगड़े निपटाता , बुद्धिमान शख्स कहलाता...
मन के मंदिर में, रिश्वत देवता को स्थापित कर,
दुनिया के समक्ष उसके गुणगान गाता!...काश मैं रिश्वत खोर का बेटा होता!