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Tuesday 23 December 2008

दस्तक दे रहा दरवाजे पर

दस्तक दे रहा दरवाजे पर.....


पहले धीमी थी आवाज ;


ध्यान गया न गया...


अपनेआप में मग्न थे हम....


सुनाई दिया न दिया...


सुंदर सपनों के सजीले महल,


मन के खुले आसमान में,


बनानें, मिटाने से कहाँ थी फुरसत?


और सुंदर, अति सुंदर की चाहत में,


हम ने मन का दरवाजा जो बंद किया...


फ़िर सुनाई दी दस्तक...


अब पहले से कुछ तेज आवाज


खलल पड़ रही थी अब हमारी मग्नता में,


शायद आवाज बंद होने का इन्तेजार भी था...


कि अचानक कुछ याद आया....


हाँ!.. आना तो था किसीने;


हर बार की तरह उसे याद था...


उसे याद था अपना कर्तव्य;


भुलक्कड़ तो हम भी नहीं थे खैर!


ज़रा से हडबडा गए तो क्या हुआ?


समझ गए है हम कौन है वो...


सपनों के सजीले महल बनाने में...


हिम्मत और प्रेरणा देने वह आया है....


"नूतन वर्ष' नाम है उसका ....


हम दरवाजा खोलने जा रहे है!


हर बार की तरह मुस्कुराते हुए...


हमारा साथ देने ही वह आया....


गुरु, सखा, आराध्य देव भी है वह...


इस बार अपने पिटारे में देखें,


हम सब के लिए, क्या क्या लेकर आया!




Tuesday 2 December 2008

आतंकवाद को नेस्त नाबूद कर दो यार

आतंकवाद को नेस्त-नाबूद कर दो यार!

आज आग की लपटों में ही,

घिरे हुए है हम सभी...

एक ही जगह है ऐसी,

कमरा भी एक है.....

बंद है दरवाजें सभी,

काला धुँआ मुंह, आँख,नाक के अन्दर...

घुटतें दम से है परेशान ,फ़िर भी...

बाहर निकलने के लिए,

एक मत... एक राय नहीं है...

चाहतें तो है सभी बाहर निकलना,

पर अफसोस कि...

एक नही अनेक दरवाजों पर ,

कर रहे है प्रहार सभी....

काश कि मिलकर सभी,

एक ही दरवाजे को तोडे...

आपस में दिल कि कडियाँ जोडें...

तो बाहर निकल सकतें है, अब घड़ी!

एक मत और एक जुट होना,

जरुरी है ऐसे में... नहीं तो....

राख के ढेर में बदलते,

देर कितनी लग सकती है भला!

अब भी समय है बच निकलने का ...

हिंदू , मुस्लिम, इसाई वाले दरवाजों को छोड़ो...

हिन्दी, मराठी या तमिल कन्नड़ को भी छोड़ो....

भारतीय बनकर, वैमनस्य का कमजोर दारवाजा...

फ़ौरन तोडो... निकलो बाहर...

आतंकवाद की धधकती आग में,

जल जाने दो आतंकियों को....

तुम एक हो,..एक ही भारतमाता है तुम्हारी,

एकता में है कितनी ताकत,

दुनिया को फ़िर दिखादो...एक बार !

अंग्रेजों को मात दी थी तुमने...

अब वो घड़ी आ गई है कि,

आतंकवाद को नेस्त-नाबूद कर दो यार!