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Wednesday, 26 November 2008

ग्रसित है हम हरदम किसी न किसी समस्यासे

तो...ग्रसित है हम हरदम,
किसी न किसी समस्यासे...

एक का समाधान होता है या नहीं होता तो,
दूसरी सामने आ कर खडी हो जाती है...अचानक्?
अचानक ही नहीं; कभी आने की खबर भी देती है,
कभी 'चैलेंज' का रुप धर कर्,
आमंत्रित मेहमान बनकर भी आती है.....

तो..ग्रसित है हम हरदम, किसी न किसी समस्यासे...

दम भरतें है हंमेशा हम, अपनी मजबूती का...
नारिएल की तरह्, उपर से मजबूत लेकिन्...
अंदर से खोखलापन लिए हुए....
जैसे तैसे हल निकाल भी लेते है लेकिन्...
कहां रुकता है उनका आना-जाना,
तो..ग्रसित है हम हरदम, किसी न किसी समस्यासे....

अकेले रहते हुए, समस्या है अकेलापन भी....
भीड में रहने पर चाहतें है अकेलापन.....
दोस्त भी समस्या उपहार में देते है कभी कभी....
धन की अधिकता भी तो समस्या है बडी....
खाली खिस्से तो उससे भी बडी समस्या है...
तो..ग्रसित है हम हरदम, किसी न किसी समस्यासे...

Wednesday, 19 November 2008

सुंदर शहर एक सपना

सुंदर शहर...एक सपना!


सुंदर, स्वच्छ राहों का जाल,
मनमोहक उजाले का मस्त आलम,
शोर भी था ऐसा कि ,लगता था कर्णप्रिय,
न धक्कामुक्की, न हादसों का भय...
घने पेड़ों की मस्त कतारें मनमोहिनी,
एक शहर ऐसा भी था....


चंचल हवाओं का बसेरा था जहाँ,
दम घुटना कहते है किसे,
जानता भी न था कोई जहाँ,
त्यौहार मिलकर मनाते थे लोग,
धर्मं एक था...मानवता नाम का जहाँ,
एक शहर ऐसा भी था....


सभी चीज वस्तुओं का बंटवारा,
सबके लिए समान ही था...
गरीब और अमीर के बीच का फांसला,
न के बराबर ही... उस शहर में था...
दगा-बाजी, मिलावट से सभी थे बेखबर,
एक शहर ऐसा भी था.....


खुली आँख तो पाया...
वह था एक सपनों शहर,
असल में तो सब था उलटा-पुलटा...
बम-धमाके, कर्णभेदी आवाजें,
घुटन, धर्म के नाम पर पाखण्ड....
ऐसा ही है ये शहर....
कहने की अब हिम्मत नहीं है कि....
एक शहर वैसा भी था...