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Thursday 27 December 2007

जहाँ महक हो...गुलाबों की!

जहाँ महक हो...गुलाबों की!


जाना है मुझे एक ऐसी जगह,
जहाँ महकते गुलाब की वादियाँ हो...
पर, पावोंमे चुभन जगाती,
कंटीली झाडियाँ न हो!


कंटीली
झाडियों में चल कर,
अब तक सफर किया है मैंने...
छाले पड़ गए है पावों में फिरभी,
चलना ज़ारी रखा है मैंने...

फूलों की दिलफेंक मुस्कान पर,
दिल न्यौछावर किया है मैंने...

दर्द भरी आह को, दिल के अन्दर ही,
अब तक दबा रखा है मैंने...
और..पंछियों की चहक पर,

अपना ध्यान दिया है मैंने...
ठंडी हवाओं के थपेडों के साथ भी,
समझौता किया है मैंने...


पर, अब और नहीं कुछ कहना ...
न ही किसी दर्द को सहना....
सब दु:खों से पीछा छुडा कर,
पहुँचाना है एक ऐसी जगह,
...जाना है मुझे एक ऐसी जगह,



जहाँ फूल तो महकते हो गुलाब के,
पर, कांटें कोई न हो...
हवाओं में नरमी हो..गरमी हो,
पर हाय! कंटीली झाडियाँ न हो!


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