किसी न किसी समस्यासे...
एक का समाधान होता है या नहीं होता तो,
दूसरी सामने आ कर खडी हो जाती है...अचानक्?
अचानक ही नहीं; कभी आने की खबर भी देती है,
कभी 'चैलेंज' का रुप धर कर्,
आमंत्रित मेहमान बनकर भी आती है.....
तो..ग्रसित है हम हरदम, किसी न किसी समस्यासे...
दम भरतें है हंमेशा हम, अपनी मजबूती का...
नारिएल की तरह्, उपर से मजबूत लेकिन्...
अंदर से खोखलापन लिए हुए....
जैसे तैसे हल निकाल भी लेते है लेकिन्...
कहां रुकता है उनका आना-जाना,
तो..ग्रसित है हम हरदम, किसी न किसी समस्यासे....
अकेले रहते हुए, समस्या है अकेलापन भी....
भीड में रहने पर चाहतें है अकेलापन.....
दोस्त भी समस्या उपहार में देते है कभी कभी....
धन की अधिकता भी तो समस्या है बडी....
खाली खिस्से तो उससे भी बडी समस्या है...
तो..ग्रसित है हम हरदम, किसी न किसी समस्यासे...