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Wednesday, 20 March 2013

हमारी भी सुनो!

हमारी भी सुनो!
..गृहिणियां!..कुछ कामकाजी है और कुछ नहीं भी है...घर परिवार से थोड़ी दूरी बनाकर,अपना एक अलग ग्रुप बनाकर मिलने-जुलने का प्रबंध करती है!...यहाँ हंसना, चुट्कुलें सुनाना, गीत-संगीत,नृत्य और कई तरह के खेल खेल कर भी मनोरंजन का माहौल बन जाता है!..किट्टी पार्टियां भी आयोजित की जाती है!

...ऐसी ही एक किट्टी-पार्टी में सहेलियों के आमंत्रित करने पर, संमिलित होने का मौका मुझे मिल ही गया!..दरमियान कुछ सहेलियों ने हंस कर जानकारी दी कि किट्टी-पार्टी और इसमें खेले जाने वाले खेल 'तम्बोला' को ले कर उनके पति उनका बहुत मज़ाक उडातें है!..इस पर मेरे कवि मन की कुछ ऐसी प्रतिक्रिया हुई...इस कविता को गा कर भी सुनाया जा सकता है!...लीजिए पेश है!


आओ!.. खेलो रे, खेलो रे, खेलो तम्बोला...

चाहे कुछ भी बोले पति,

वो तो है बड-बोला...आओ!.. खेलो रे, खेलो रे, खेलो तम्बोला...



सौ रुपये की एक टिकट, लागे सस्ती री..,

जम कर होगा यहाँ खेल..साथ में मस्ती री..,

तुम जीतो या हारो सखी..रहोगी हँसती री...

मिल कर करेंगी सब-सखियाँ..मटर गश्ती री...

खाना, पीना और चाय का गर्म गर्म एक प्याला....आओ खेलो रे....



नए नए सूट-साडियां, चुन्नीयाँ चमकीली...

लटका हो पर्स कंधे पे ..होगी दरिया-दिली...

आज दिखाओ गुलाबी रंगत..ना हो लाल पीली...

सुनो-सुनाओ चुटकुले और कर लों बातें रसीली...

सिंगार का भी आज दिखा दो...एक अंदाज निराला...आओ खेलो रे...



किट्टी को बना सकते हो..मिलने का बहाना...

थोड़ी सी, मौज और मस्ती...ना कुछ है गंवाना...

खुद रहोगे खुश, तो आसां है दुनिया को मनाना...

बस! थोड़े से समय को ले कर..आनंद है लुटाना...


मौज मनाओ..भूल जाओ रिश्तों का झमेला...आओ खेलो रे ...

Tuesday, 5 February 2013

वाह, वाह!...क्या कहने!

वाह, वाह!..क्या कहने!

कल ही का वाकया सुनाते है दोस्तों!
एक हिंदी काव्य प्रतियोगिता पर नजर पडी!
प्रतियोगिता का परिणाम आ चुका था;
मन में उत्सुकता पैदा होती जान पडी!

हम बढते गए आगे आगे...
'विनरों' के नाम थे अनजाने...
'सांत्वना' से भी नवाजित थे जो...
उनमें भी नजर न आए अपने,जाने-माने! 

प्रथम 'विनर' ले गया था..
रूपये 25 हजार की 'बिग' राशी...
20 हजार ले गया था..
द्वितीय क्रमांक का प्रत्याशी!
और मात्र 15  हजार में बनाया था..
तीसरे नंबर वाले को संतोषी!
दोस्तों!.. इस प्रकार से हुई थी यहाँ...
अच्छे कवियों की ताज-पोशी!

'विनरों' की कविताएँ पढ़ने से...
हम रोक न सके अपने आपको...
एक के बाद एक पढते चले गए....
उस दिन नींद भी न आई हमें रात को!

यहाँ ब्लॉगर्स डॉट कॉम पर....
आएं दिन पढते है हम सुन्दर कविताएँ..
कुछ कवि''दोस्त' तो बड़ी ही कुशलता से ...
सामने रखते है अपनी भावनाएं...

कैसी हार-जीत?..कौन आगे..कौन पीछे, 
वे तो पेश करते रहतें है नई नई रचनाएँ...
उन 'विनर्स' से तुलना करें तो...
बहुत आगे है यहाँ की प्रतिभाएं!

ऐसा ही होता आया है सदियों से,
हकदारों को मिलता नहीं सम्मान!
अयोग्य बटोर लेते है प्रशंसा...
शायद यही है,विधी का लिखा विधान!


Tuesday, 8 January 2013

अब ये आग न बुझेगी...

अब ये आग न बुझेगी...




पहले एक माचिस की तीली जली..
समझ बैठे उच्च पदासीन...
जलने दो..क्या कर लेगी नन्ही सी तीली...
पल दो पल की चमक दिखा कर...
बुझ जाएगी अपने आप भली.... 
पहले भी तो जलाई है लोगों ने...
कई कई तीलियां...कई कई बार....
हम तक आंच कभी न आई...
लोग ही झुल्सतें रहे हर बार....

लेकिन आग बन कर...
भडक ही उठी आखिर...
दामिनी नाम की चिनगारी...
और गले तक आ कर अटकी...

सधे हुए नेताओं की नेता गिरी...

ये आग कर देगी खाख...
नराधम, दुष्ट, नर-पिशाचों को...
नारी को अबला समझ कर टूट पड़ने वाले...
कुकर्मी,नीच, बहशी, दरिंदों को...
ये आग जला डालेगी..
जनता के सेवक बन कर...
लूट-पाट कर रहे डाकूओं को...
ये आग जला देगी जिन्दा..
नोट डकार कर...
मनमाने फैसले सुनाने वाले..
न्यायालय में बैठे न्यायाधिशों को...
ये आग बेबाकी से निगल लेगी...
खाकी-वर्दी पर कालिख पोतने वाले....
कहलाते सुरक्षा कर्मियों को...

ये आग बन चुकी है अब दावानल...
इसे बुझाना मुमकीन नहीं अब..
ये आगे बढ़ती जा रही..पल, पल!
















Monday, 31 December 2012

ओ भारत के नेताओं!

ओ भारत के नेताओ!

नया साल आ गया है फिर से...
बार बार आता रहा है!
पर..ये ना समझना आम लोगो!
कि...'कदम बढते जा रहे है आगे...
यकीनन पुराने ही ढर्रे पर...
हर बार, दोहराता आया है नया साल..
नई कहानी पुरानी तर्ज पर...

नई उमंगें, नए फूलों की तरह...
खिलती... मन-भावन खुशबू बिखेरती...
मन में नए संकल्प भरती...
जीवन के दु:खों को,
नेस्त नाबूत करने की..
नई  प्रतिज्ञाएं दोहराती...
फिर से उतर आएगी धरती पर...

पुरानी गलतियाँ अब...
फिर न दोहराई जाएगी...
कोई बेटी अब जबरन...
दामिनी न कहलाएगी...
दुष्टों को...उनके कुकर्मों की सजा...
मृत्यु दंड के रूप में सुनाई जाएगी...
भ्रष्टाचार को मिलेगी तड़ी पार की सजा...
भारत में राम-राज की स्थापना...
नए सिरे से की जाएगी!
अब कोई रावण फिर ना लेगा जनम...
हमारी प्यारी भारत-भूमि पर...

ओ भारत के नेताओं!....
ओ क़ानून के कर्ता-धर्ताओ!
झूठे वचनों से हमें,
भरमाते आ रहे हो बरसों से ...
विश्वास उन वचनों पर...
हम भी आँखे मूंदे...
करते आ रहे बरसों से....
गूंगे-बहरे बने रहते हो...
हाँ!..सुनते हो या मुंह खोलते हो...
सिर्फ अपने स्वार्थ के मुद्दों पर...
तुम तो अब तक न बदले...
पर अब हम बदल गए है...
नए साल को...एक बेदाग़ आइना...
बनाने पर हम भी तुले हुए है!
तुम्हे अब करने पड़ेंगे सारे काम...
वास्तव में जनता के सेवक बन कर...
बुरे कुकर्मों की तुम्हे भी मिलेगी सजा...
अगर रहना चाहो तुम इस जन्म-भूमि पर!

अब हम जाग चुके है...
नया साल...नए ही रूप में सामने होगा...
क्यों कि....
हमें अब भरोसा है सिर्फ हम पर..

Friday, 21 December 2012

जीवन है एक 'चलचित्र'!

जीवन है एक 'चलचित्र'!

हर मनुष्य का जीवन...
एक चलचित्र ही तो है!
जन्म के साथ शरू हो कर...
मृत्यु पर समाप्त होता है!
हर चलचित्र की अवधि...
होती है अलग, अलग..
लेखक,निर्देशक और निर्माता...
एक ही होता है हर चलचित्र का..
वही उपरवाला...परमात्मा!

हर मनुष्य अपने चलचित्र में ...
मुख्य भूमिका निभाता है!
सुख,दु:ख के भावों में...
अपने आप को डुबो कर..
तन्मय हो कर...
कहानी के उलटे और सीधे...
रास्तों से गुजरता हुआ...
चलचित्र को...
समाप्ति के दरवाजे तक...
पहुंचा कर ही दम लेता है!

कुछ मनुष्यों के चलचित्र...
सफलता करते है अर्जित...
'हिट' भी हो जाते है...
पुरस्कारों से भी नवाजे जाते है!
प्रमुख भूमिका निभाने वाला कलाकार..
पाता है प्रसिद्धी...युगों युगों तक भी..

और जब कुछ चलचित्र...
'फ्लॉप' हो जाते है...
और कलाकार की...
होती है विवंचना...
नाकामयाबी का झंडा..
जब उसे थमाया जाता है...
कौन सोचता है कि...
वह तो चलचित्र का...
एक कलाकार मात्र है...
लेखक, निर्देशक और निर्माता...
के इशारों पर थिरक रहा है!

कौन सा चलचित्र होगा 'हिट'
और कौन सा जाएगा 'पिट'
इसकी भविष्यवाणी....
की जाती है...
सिर्फ अटकलें लगा कर...
'हिट' चलचित्र का नायक...
अकलमंद और मेहनती ठहराया जाता है...
और फ्लॉप चलचित्र का नायक..
मंदबुद्धि और आलसी माना जाता है!

चलचित्र बनते रहेंगे...
हिट और फ्लॉप होते रहेंगे...
कलाकार मनुष्य जो ठहरें!...                ( फोटो गूगल से साभार)
अपनी हिस्से की भूमिका...
निभाते रहेंगे...निभाते रहेंगे!     



Sunday, 16 December 2012

जय हिंदी, जय भारत!

जय हिंदी, जय भारत!


मेरी मातृभाषा हिंदी नहीं है...भारत में अनेक भाषाएँ बोली जाती है, सभी भारत निवासियों की मातृभाषा हिंदी तो हो नहीं सकती!...लेकिन हम भारतीय है, हमारे बीच एकता का होना बहुत जरूरी है..इसके लिए संपर्क सूत्र भी एक ही होना चाहिए......हिंदी का प्रचार और प्रसार सबसे अधिक है!...हिंदी भाषियों की संख्या भी भारत में सर्वाधिक है!..यह हिंदी यू.पी.की, एम.पी. की,राजस्थान की, हरियाणा की भी है!...अब हिंदी फिल्मों के बहुत बड़े योगदान से हिंदी...मराठी, गुजराती, तामिल, बंगाली इत्यादि भाषाओं को भी अपने साथ मिला चुकी है!... इसी वजह से यह एक मजबूत सूत्र है!...तो क्यों न इसी मजबूत सूत्र को थाम कर भारत की एकता बनाएं रखे?....और हिंदी का ज्यादासे ज्यादा प्रयोग बोल-भाषा एवं लेखन कार्य के लिए करें?...इससे विदेशों में भी हम अपनी अलग पहचान बना सकतें है!

Monday, 10 December 2012

यादें...बड़े काम की चीज!


यादें...बड़े काम की चीज!

कुछ यादें तो होती है...बड़ी रंगीन...
इन्हें संजोकर रखना है बड़ा कठीन...
दिल के किसी कोने में दबा कर रखना...
कभी कभी फुर्सत में इन्हें दिन का उजाला दिखलाना...
या रात के अँधेरे में चाँद की रोशनी दिखलाना....
कही दूर ना चली जाए इसलिए...
सहलाना..बहलाना..थपथपाना..
दिल से लगा कर प्यार के...
मस्ती भरे दो घूंट पिलाना...

यादे हमारे लिए होती है...
या हम यादों के लिए होते है...
इसका फैसला कर चुकी होती है कुदरत...
यादों के सहारे हमें जिन्दा रखे होती है कुदरत...
यादें उस महल की खँडहर होती है...
जो महल बनने वाला था..पर बना नहीं...
यादें वह उजड़ा गुलशन होती है....
जिसमें बहार आनी थी...पर आई नही...

फिर भी यादें हमें सुख देती है दो घड़ी का...
आस बंधाती है...आने वाले सुनहरे कल का...
जोश जगाती है..नया महल खडा करने का...
सपने जगाती है,फिर नया गुलशन गुलजार करने का...