..गृहिणियां!..कुछ कामकाजी है और कुछ नहीं भी है...घर परिवार से थोड़ी दूरी बनाकर,अपना एक अलग ग्रुप बनाकर मिलने-जुलने का प्रबंध करती है!...यहाँ हंसना, चुट्कुलें सुनाना, गीत-संगीत,नृत्य और कई तरह के खेल खेल कर भी मनोरंजन का माहौल बन जाता है!..किट्टी पार्टियां भी आयोजित की जाती है!
...ऐसी ही एक किट्टी-पार्टी में सहेलियों के आमंत्रित करने पर, संमिलित होने का मौका मुझे मिल ही गया!..दरमियान कुछ सहेलियों ने हंस कर जानकारी दी कि किट्टी-पार्टी और इसमें खेले जाने वाले खेल 'तम्बोला' को ले कर उनके पति उनका बहुत मज़ाक उडातें है!..इस पर मेरे कवि मन की कुछ ऐसी प्रतिक्रिया हुई...इस कविता को गा कर भी सुनाया जा सकता है!...लीजिए पेश है!
आओ!.. खेलो रे, खेलो रे, खेलो तम्बोला...
चाहे कुछ भी बोले पति,
वो तो है बड-बोला...आओ!.. खेलो रे, खेलो रे, खेलो तम्बोला...
सौ रुपये की एक टिकट, लागे सस्ती री..,
जम कर होगा यहाँ खेल..साथ में मस्ती री..,
तुम जीतो या हारो सखी..रहोगी हँसती री...
मिल कर करेंगी सब-सखियाँ..मटर गश्ती री...
खाना, पीना और चाय का गर्म गर्म एक प्याला....आओ खेलो रे....
नए नए सूट-साडियां, चुन्नीयाँ चमकीली...
लटका हो पर्स कंधे पे ..होगी दरिया-दिली...
आज दिखाओ गुलाबी रंगत..ना हो लाल पीली...
सुनो-सुनाओ चुटकुले और कर लों बातें रसीली...
सिंगार का भी आज दिखा दो...एक अंदाज निराला...आओ खेलो रे...
किट्टी को बना सकते हो..मिलने का बहाना...
थोड़ी सी, मौज और मस्ती...ना कुछ है गंवाना...
खुद रहोगे खुश, तो आसां है दुनिया को मनाना...
बस! थोड़े से समय को ले कर..आनंद है लुटाना...
मौज मनाओ..भूल जाओ रिश्तों का झमेला...आओ खेलो रे ...