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Monday 10 December 2012

कविता आजकल...(हास्य कविता)

कविता आजकल...(हास्य कविता)

कविता आजकल....
नहीं रही प्रॉपर्टी...
जन्म-जात कविओं की....
नहीं रही सगी-सबंधी...
मनन-चिंतन में डूबे,दु:खी आत्माओं की....
नहीं रही लाडली....
मस्तमौला, प्रेमी, रसियाओं की...
नहीं रही शान....
शूर वीरों की गाथा सुनाने वालों की....
नहीं रही प्रणय में असफल...
लैला-मजनू, हीर-रांझों की....
कविता आजकल....
लिख रहा है ऐरा-गैरा-नत्थू-खैरा...
कविता लिखने के लिए...
बिन-जरूरी है जन्म-जात कवि होना!
जेब में हो नोटों के बंडल...
जो कुछ लिखों कविता ही है...
किसी और से लिखवाकर....
अपने नाम पर प्रकाशित करवा लों..
कविता आखिर, कविता ही तो है...

वैसे लिखनी हो गई है बहुत आसान...
छपनी तो हो गई है....
उससे भी बहुत आसान....
ना कहीं प्रेषित करने का झंझट...
ना खेद सहित वापसी का खेद...
‘ओंन लाइन’’ प्रकाशित खुद ही करों...
मित्रों को जबरदस्ती पढ्वावों...
मित्र भी लिखतें है कविता....
वे आपकी ‘लाइक’ करतें है...
आप भी उनकी ‘लाइक’ करों!

जो कुछ आपने लिखा है....
ढाला है, शब्दों की कतार में ....
उसकी किताब भी छपवाओं बेशक...
प्रकाशकों की दुकान खुली है....
आप ही के इंतज़ार में....

तो कविता आजकल...
बहुत सस्ती मिल रही है महंगाई के जमाने में...
खूब करो पठन-पाठन...
कवियित्री ‘अरुणा’ कह रही...क्या हर्ज है हँसने-हंसाने में..


1 comments:

Yashwant R. B. Mathur said...


दिनांक 20/01/2013 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
धन्यवाद!

हाउसवाइफ किसे कहते हैं ?........हलचल का रविवारीय विशेषांक....रचनाकार....रेवा टिबरेवाल जी